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सुखी कौन

 भारत में कोरोना महामारी के फैलाव को रोकने के लिए लगाया गया लॉकडाउन अब पूरी तरह से खत्म हो चुका था। शहरों से अपने अपने गांवों की ओर लौट चुके सभी मजदूर अब रोजगार की तलाश में वापस शहरों की ओर जा रहे थे।

सुखी कौन




      ज्येष्ठ माह की तपती दोपहर में लगभग एक बजे का समय रहा होगा। सूर्य अपनी प्रचंडता से चारों ओर आग बरसा रहा था। सड़के आग की तरह जल रहीं थी। ऐसे ही समय फ़टे पुराने कपड़े पहने नंगे पांव एक मजदूर अपने सिर पर अपना सामान उठाये रोजगार की तलाश में गांव से शहर की ओर जा रहा था। सड़क की तपती डामर पर पैर रखते ही उसके पांव जलने लगते थे। सड़क के आस पास बालू रेत बिखरी हुई थी, और गर्म राख की तरह वो भी जला रही थी। मजदूर का नाम श्याम था।

    चलते चलते वह काफी तक चुका था और थोड़ा आराम करना चाहता था। थोड़ा और चलने के बाद सड़क के किनारे एक घना और छायादार पेड़ उसे दिखाई दिया। पेड़ को देखकर उसका मन प्रसन्न हो गया। श्याम उस पेड़ के नीचे जाकर अपना सामान नीचे रखकर अपना गमछा बिछाकर बैठ गया और थोड़ा सुस्ताने लगा। पेड़ के नीचे इतनी ठंड थी कि उसे जल्द ही नींद आ गयी।

   कुछ समय बाद उसी रास्ते से एक साइकिल सवार गुजरा । देखने से वह लगभग 45 वर्ष का लग रहा था और वेशभूषा से मध्यमवर्गीय परिवार से लग रहा था। छायादार पेड़ देखकर वह भी अपनी साइकिल को पेड़ के नीचे खड़ी करके बैठ गया। उसका मन भूख और प्यास से व्याकुल था। वह अपना कार्य समाप्त करके दफ्तर से अपने घर जा रहा था। उसका घर अब भी लगभग 3 कोस दूर था। उसका नाम रमेश था।

    आज दफ्तर में 1 बजे तक मेहनतपूर्वक काम करने पर भी उसे इतनी थकान नही हुई थी जितनी बिना गलती के कारण उच्च अधिकारी की कठोर और अपमानजनक वाणी को सुनकर होने वाले कष्ट के कारण हुई थी। रमेश एक ईमानदार और मेहनती सरकारी क्लर्क था। बैठे बैठे वह सोचने लगा कि " मेरा अधिकारी अपनी गलतियों का ठीकरा मेरे माथे पर ही फोड़ता है। अपनी पत्नी की डांट फटकार का गुस्सा भी दफ्तर आकर मुझ पर ही निकालता है।" 

    (मजदूर श्याम की ओर देखते हुए मन में सोचता है) 

" आजकल क्लर्क का जीवन तो इस मजदूर के जीवन से भी बेकार है। ईमानदारी के वेतन से न तो वह अपने परिवार का पेट ही पाल सकता है और न ही परिवार वालों को खुश रख सकता है। मैं तो चापलूसी और झूठी बातों से अपने अधिकारियों को भी खुश नही रख पाता ? अब ईमानदार लोगों की कोई इज्जत नही रह गई है। मेहनत से काम करने वालों को न तो कोई पुरस्कार मिलता है और न ही मान सम्मान। 

मुझसे अच्छा इस मजदूर का जीवन है। यह अपनी बुद्धि और परिश्रम के अनुसार अपनी मजदूरी प्राप्त कर लेता है। इसे न तो पदोन्नति (प्रमोशन) की चिंता है और न ही पदावनति ( डिमोशन) की । अपनी मर्जी से काम से छुट्टी भी ले सकता है। अपनी मर्जी से काम पर जाता है। और देखों कैसे निश्चिंत होकर गमछा बिछाकर ही आराम से सो रहा है। "

   यह सोचकर वह अपनी साइकिल पर लटकी बोतल में पास वाले नल से पानी भरकर लाया और पानी पीकर फिर से उसी पेड़ के नीचे आ कर बैठ गया ।

    थोड़ी देर बाद वहां एक कार आकर रुकी । कार से लगभग चोबीस पच्चीस साल का एक युवक उतरा। वेशभूषा से वह किसी रईस परिवार से लग रहा था। वह खुद ही गाड़ी चलाकर आया था। सम्भवतः आज उसका ड्राइवर उसके साथ नही होगा। युवक का नाम रोहन था। 

   गाड़ी में पानी कम होने के कारण गाड़ी रुक गयी थी। उसे अब भी बहुत दूर जाना था। रोहन आज कोर्ट जाकर आया था। उस पर कर चोरी का गंभीर आरोप था। अपने वकीलों से मिकलर अधिकारियों को अपने पक्ष में करने के विषय को लेकर चिंतित था।  

    इस केस में हार जाने के कारण बहुत धन के नुकसान के साथ साथ अपमान का भी सामना करना पड़ा था।

 "समाज में यदि मान-सम्मान न हो , तो जीने का कोई अर्थ नही। स्वाभिमान नही तो धन भी बेकार है। जो लोग कल तक सम्मान करते थे , वे ही अब उसका अपमान करेंगे। जो लोग उसके पैसों पर पलते थे , उसे आंख दिखाएंगे।" 

ये सब बातें सोच सोचकर उसका मन बहुत परेशान था।

  अभी गाड़ी में पानी डालने की समस्या भी सामने थी। 

"क्या वह स्वयं पानी लाकर अपनी गाड़ी में डालेगा? यह साइकिल वाला क्लर्क क्या मुझे पहचानता होगा ? क्या मैं इसे पानी लाने का आदेश दे सकता हूँ? क्या वह पैसे लेकर मेरा काम कर देगा? और अगर इसने मना कर दिया तो? " 

इसी तरह के विचार उसके मन में उमड़ने लगे।

फिर वह सोये हुए मजदूर को देखकर सोचने लगा कि " यह मजदूर मेरी तुलना में अधिक सुखी है। निःसंकोच अपने हाथों से ही सारे कार्य करता है। जहां चाहता है वहाँ आराम करता है। न धन चोरी का डर है न मान-सम्मान खोने का। यह दिनभर काम करता है , परिवार से साथ बैठकर आराम से खाना खाता है। रात में सुकून की नींद सोता है। मेरी अमीरी ही मेरे दुःखों का कारण है। मैं अपने पूर्वजों की दौलत पर अभिमान करता हूँ। मैं तो अपना काम भी स्वयं नही कर सकता। वास्तव में मेरी तुलना में तो यह मजदूर ही सुखी है। "

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   अमीर लड़के की मनोदशा देखकर क्लर्क कार के पास आया और लड़के से बनावटी "ना" सुनकर भी पानी लाकर कार में डाल दिया। 

मेहनताने के रूप में रोहन की ओर से " धन्यवाद" पाकर अपनी साइकिल उठाकर अपने घर की ओर चल दिया।

रोहन भी अपनी गाड़ी लेकर वहाँ से रवाना हो गया। गाड़ी का शोर सुनकर अब तक मजदूर ( श्याम) भी जाग चुका था। वह भी क्लर्क और अमीर लड़के के भाग्य से ईर्ष्या करता हुआ अपना सामान उठाकर वहां से चला गया।

 यहाँ प्रत्येक को एक दूसरे के भाग्य से ईर्ष्या थी।

क्या आप बता सकते हैं कि वास्तव में सुखी कौन है? 

समाप्त

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4 टिप्‍पणियां:

  1. सुखी वही है मेहनत और इमानदारी से कमा कर खाता है, जगह कहीं भी हो। दूसरी बात यह भी है कि ऐसा व्यक्ति वर्तमान समय मे परेशानी का कारण बन जाता है।

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