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काल किसे कहतें ? काल के भेद-उपभेद |






 काल
“काल” शब्द का सामान्य अर्थ है “समय”|
क्रिया के जिस रूप से उसके होने का समय मालुम हो , उसे “काल” कहते हैं|
काल के इस रूप से क्रिया की पूर्णता, अपूर्णता के साथ सम्पन्न होने के समय का बोध होता है|

काल के भेद:-

       हिंदी में काल के 03 भेद होते हैं:-

     1.   भूतकाल                      (06 भेद)
     2.   वर्तमान काल                (05 भेद)   
     3.   भविष्यत् काल                (03 भेद)

1.     भूतकाल :-
भूतकाल  का अर्थ है बीता हुआ समय| वाक्य में क्रिया के जिस रूप से बीते हुए समय में कार्य का होना पाया जाता है, वह भूतकाल कहलाता है|
यह क्रिया व्यापार की समाप्ति बताने वाला रूप होता है|

भूतकाल के 06 भेद होते हैं:-
(i)                    सामान्य भूत
(ii)                  आसन्न भूत
(iii)               पूर्ण भूत
(iv)               अपूर्ण भूत
(v)                  संदिग्ध भूत
(vi)               हेतुहेतुमद्भूत

 
(i)      सामान्य भूतकाल :-
जब क्रिया के व्यापार की समाप्ति सामान्य रूप से बीते हुए समय का बोध कराती है , तो वहां सामान्य भूतकाल होता है|
सामान्य भूतकाल में यह पता नहीं चलता क्रिया की समाप्ति अभी हुई है  या थोड़ी देर पहले हुई है |

पहचान :- धातु+ या/यी/ये    अथवा  चुका/चुकी/चुके 

     जैसे:-         भव्या घर गई|                              अमित ने गाना गाया|
                     मनोज ने पत्र लिखा |                      राहुल आया|

(ii)   आसन्न भूतकाल  :-
आसन्न में क्रिया की समाप्ति निकट भूतकाल में या तत्काल ही सूचित होती है| आसन्न भूतकाल में पता चलता ही कि क्रिया अभी-अभी ही समाप्त हुई है|
सामान्य भूत  की क्रिया के साथ “है/हैं” लगाने से आसन्न भूतकाल की क्रिया बन जाती है| 

पहचान :- धातु+ या है/यी है/ ये है अथवा चुका है/चुकी है/चुके हैं |

जैसे:-

राजू विद्यालय से आया है|                मोहन घर आ गया है |
                मोहित ने पुस्तक पढ़ी है|                  श्याम ने गाना गाया है|

(iii)  पूर्ण भूतकाल :-
जब क्रिया की समाप्ति बहुत समय पहले हुई हो अर्थात जब क्रिया की समाप्ति के समय का स्पष्ट बोध होता है , तो वहां पूर्ण भूतकाल होता है|

पहचान :-  धातु+ या था/ यी थी/ये थे   अथवा चुका था/चुकी थी/चुके थे|

जैसे:-       रोहन किताब पढ़ चुका था|      वे विद्यालय गये थे|
              राधा घर गयी थी|                 मोहित ने पुस्तक पढ़ी थी|


(iv)      अपूर्ण भूतकाल :-
जब क्रिया के जिस रूप से यह पता चलता है कि क्रिया का व्यापार अपूर्ण रहा है, अर्थात क्रिया पूरी तरह से सम्पन्न नही हुई है , तो वहां अपूर्ण भूतकाल होता है| क्रिया भूतकाल में हो रही थी परन्तु उसकी समाप्ति का पता नहीं चलता | 

पहचान :- धातु + रहा था/ रही थी/रहे थे 

    जैसे:-         भाविनी घर जा रही थी|         मैं खाना खा रहा था |
                    सुभाष गाना गा रहा था |        निशांत पुस्तक पढ़ रहा था |

(v)        संदिग्ध भूतकाल :-
जब यह सन्देह बना रहता है कि भूतकाल में कार्य (क्रिया) संपन्न हुआ है या नहीं, तो वहां संदिग्ध भूतकाल होता है| इसे संभाव्य भूतकाल भी कहते हैं|

पहचान :- धातु+ आ होगा/ ई होगी/ ए होंगे  अथवा चुका होगा/चुकी होगी/चुके होंगे 

  जैसे:-
              भावित खाना खा चुका होगा|           शीतल खाना बना रही होगी|
              सुरेश दिल्ली गया होगा|                  रोहित ने गाना गाया होगा|


(vi)        हेतुहेतुमद्भूतकाल :-
जब भूतकाल की एक क्रिया दूसरी क्रिया पर निर्भर करती है, और दोनों क्रियाओं के संपन्न होने के लिए पहली क्रिया का होना आवश्यक होता है,  तो वहां हेतुहेतुमद्भूतकाल होता है|  

      पहचान :- धातु + ता/ती/ते जुड़े होते है| और दोनों वाक्यों के बीच योजक शब्द जुड़े होते हैं|    

 जैसे:-
               यदि तुमने पढाई की होती तो अच्छे अंक आते |
                वह आता तो मै जाता | 
                युद्ध होता तो गोलियां चलती |

2.          वर्तमान काल :-

क्रिया का वह रूप जिससे कार्य का वर्तमान समय में होना पाया जाए , तो वहां वर्तमान काल होता है| वर्तमान काल में क्रिया का आरम्भ तो हो चुका होता है परन्तु उसकी समाप्ति नही होती| अर्थात क्रिया का व्यापार निरंतर चलता रहता है| अन्य शब्दों में :- क्रियाओं की निरंतरता को वर्तमानकाल कहते हैं|

वर्तमान काल के भेद:-
मुख्य रूप से तो वर्तमान काल के 03 भेद होते है पर कुछ जगह 05 भेद भी मिलते हैं :-
(i)                  सामान्य वर्तमान काल
(ii)                अपूर्ण / तात्कालिक वर्तमान काल
(iii)              संदिग्ध वर्तमान काल
(iv)              संभाव्य वर्तमान काल
(v)                आज्ञार्थ वर्तमान काल


 (i)  सामान्य वर्तमान काल :-
क्रिया का वह सामान्य रूप वर्तमान काल कहलाता है जिससे क्रिया का वर्तमान काल में होना पाया जाता है|

पहचान :- धातु+ता हूँ/ ता है/ती है/ते हैं |

जैसे:-         मैं पढता हूँ|                          मोहन खेलता है|
                सीता नाचती है|                    लडकें हँसते हैं|

(ii)  अपूर्ण/तात्कालिक वर्तमान काल :-
जब क्रिया के व्यापार के अपूर्ण होने अथवा क्रिया के निरंतर चलते रहने का बोध होता हैं , तो उसे अपूर्ण/ तात्कालिक वर्तमान काल कहते हैं|

पहचान :- धातु+रहा हूँ/ रहा है/रही है/रहें हैं |

  जैसे:-     राम पढ़ रहा है|            मैं पढ़ रहा हूँ|      राधा नाच रही है|
              लडकें खेल रहें हैं|           

(iii)  संदिग्ध वर्तमान काल:-
जब क्रिया के वर्तमान काल में संदेह होता है, उसे संदिग्ध/संभाव्य वर्तमान काल  कहते हैं| इनमें क्रिया के साथ ता,ती,ते के साथ होगा, होगी,होंगे का भी प्रयोग होता है| 

पहचान :- धातु+ता/ती/ते+ होगा/ होगी /होंगे 

        राम पत्र लिखता होगा |                          राधा गाना गाती होगी|
        श्याम खेत में काम करता होगा |                मोहित पढाई करता होगा|
        बच्चें खेलते होंगे|   

(iv)  संभाव्य वर्तमान काल:-
जब वर्तमान काल में कार्य के पूरे होने की संभावना या आशंका का भाव बना रहता हो तो वहां संभाव्य वर्तमान काल होता है|  इसमें “शायद” शब्द कस भाव प्रकट या छिपे हुए रूप में होता है|

पहचान :- क्रिया के अंत में सामान्यत: “हो” जुड़ा रहता  है|

जैसे:-         (शायद) राम आया हो|                           (शायद) वह लौटा हो|
                शायद , पिताजी आते हो|

(v)  आज्ञार्थ वर्तमान काल :-
वर्तमान काल में जब कोई व्यक्ति आज्ञा देता है तो क्रिया का यह रूप, आज्ञार्थ वर्तमान काल कहलाता है|
जैसे:-
        आप भी खाइए|             मोहन, अब तू पढ़|
        तुम यह पाठ पढो|          अब मैं चलूँ?


3.          भविष्यत काल :-
क्रिया का वह रूप जिससे आने वाले समय में कार्य के सम्पन्न होने का बोध होता है, तो उसे भविष्यत् काल कहते हैं|

भविष्यत काल के भेद :-
(i)         सामान्य भविष्यत काल
(ii)      संभाव्य भविष्यत काल
(iii)     हेतुहेतुमद भविष्यत् काल

(i)  सामान्य भविष्यत काल:-
क्रिया के जिस रूप से भविष्य में क्रिया के सामान्य रूप से संपन्न होने का बोध होता है , तो उसे सामान्य भविष्यत काल कहते हैं|

पहचान :- क्रिया + गा/गी/गे 

जैसे:-
  वह जाएगा|                 सोहन पढ़ेगा |         शीला गाएगी|
कमला पत्र लिखेगी |      लडकें खेलेंगें|                मैं पुस्तक पढूंगा|

(ii)  संभाव्य भविष्यत काल:-
क्रिया के जिस रूप से भविष्य में कार्य सम्पन्न होने की संभावना का पता चलता है, तो उसे संभाव्य भविष्यत काल कहते हैं|

पहचान :- क्रिया + ए/ऐ/ओ/ऊँ   (शायद/हो सकता है/संभव है आदि शब्दों के भाव प्रकट   होते हैं|)

जैसे:-      वे शायद आज आएं|                          कदाचित आज  मोहित आए|
             संभव है, कल परिणाम आ जाए|           शायद मैं काल आऊँ |

(iii)  हेतुहेतुमद भविष्यत् काल :-
             जब एक क्रिया का भविष्य में सम्पन्न होना दूसरी क्रिया पर आश्रित हो और प्रथम क्रिया के भविष्य में संपन्न होने पर दूसरी क्रिया के भी सम्पन्न होने का पता चलता है, तो वहां हेतुहेतुमद भविष्यत् काल होता है| 

जैसे:-      छात्रवृति मिलेगी , तो मैं पढूंगा |
             तुम कमाओगे तभी खाओगे|         राम आये तो मैं जाऊं|

(नोट:- कहीं कहीं भविष्यत काल का चौथा भेद भी मिलता है)
 (iv) आज्ञार्थ भविष्यत काल :-
            किसी क्रिया व्यापार के आगामी समय में पूर्ण करने के लिए आज्ञा प्रकट करने वाले रूप को आज्ञार्थ भविष्यत काल कहते हैं| इसमें क्रिया के साथ “इएगा” जुडा रहता है|

            आप भी खाइए|              आज आप भी आइएगा|
            



                (कृपया अपने प्रश्न और सुझाव कमेन्ट बॉक्स में जरुर लिखें)







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