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तुमने किया ही क्या है?

   


किया ही क्या है तुमने



गोपी ने जब होश संभाला तब तक उसके पिता का साया उसके सर से उठ चुका था, और रह गई थी अपनी माँ के साथ साथ 2 छोटे भाई और एक बहन की जिम्मेदारी। माँ अपने पति (गोपी) से बिछुड़ने के कारण दिन प्रतिदिन गुमसुम सी रहनी लगी और पति की मृत्यु के लगभग दो महीने बाद ही वह भी गोपी से भाई बहनों की जिम्मेदारी का वादा लेकर इस संसार की समस्त जिम्मेदारियों से आजाद हो गई। अब मात्र 8 साल की उम्र में ही गोपी ने भी भाई बहनों की परवरिश की जिम्मेदारी ओढ़ ली।

    अचानक इतनी जिम्मेदारी आने पर पहले तो वह टूट गया, पर उसने अपने भाई बहनों के खातिर संभाला और अपने साथ साथ उनका भी पेट पालने के उपाय ढूंढने लगा।

   माता पिता की मृत्यु से अनाथ हुए बच्चों से कुछ दिन तो पड़ोसियों ने सहानुभूति दिखाई पर धीरे धीरे सबने दूरी बनानी शुरू कर दी।

   गोपी ने किसी ढ़ाबे पर नौकरी कर ली। थोड़ी सी मजदूरी और दो वक्त की रोटी का जुगाड़ कर लिया। ढ़ाबे का मालिक बहुत ही निर्दयी था 50 रुपये के बदले 100 रुपये का काम अपने नौकरों से लेता था। गोपी कई बार वह काम छोड़ने की सोचते लेकिन अपने भाई बहनों के मासूम चेहरे और माँ को दिया हुआ अपना वादा याद कर के रुक जाता।

  गोपी अब लगभग 16 वर्ष का हो चुका था, और अब शहर के एक बड़े रेस्टोरेंट में काम करता था। रेस्टोरेंट का मालिक बहुत ही नरम दिल का था। गोपी का काम के प्रति समर्पण और उसकी दिन दशा देखकर उसे गोपी पर दया आयी। उसने गोपी की पगार बढ़ा दी और उसे अपने भाई बहनों के साथ रहने के लिए एक छोटा सा कमरा भी दे दिया।

  गोपी भी इस अहसान के बदले मन लगाकर काम करता और मालिक को खुश रखने का प्रयास करता। धीरे धीरे सेठ का विश्वास गोपी पर बढ़ने लगा और गोपी को अपने बेटे की तरह मानने लगा।

   सेठ के केवल एक लड़की थी, लड़का न था। लगभग 3 वर्ष पश्चात एक सड़क दुर्घटना में सेठ बुरी तरह से घायल हो गया। गोपी ने सेठ की खूब सेवा की। लेकिन सेठ ने जान लिया था कि वह अब नही बचेगा इसलिए एक दिन गोपी को बुलाकर अपनी बेटी का हाथ और रेस्टोरेंट की पूरी जिम्मेदारी गोपी को सौंप दी। दो चार दिन बाद सेठ ने इस दुनिया से विदा ली।

 अपने पिता की मृत्यु से दुःखी सेठ की बेटी कमला ने अपने पिता की इच्छानुसार गोपी से विवाह किया और गोपी के साथ अपने पिता का रेस्टोरेंट चलाने लगी। गोपी के भाई बहनों को वह गोपी की तरह ही बहुत चाहती थी। अब गोपी और उसका परिवार बहुत खुश था।

  गोपी के भाई बहन भी बड़े हो चुके थे। रेस्टोरेंट में काम शुरू करने के साथ ही गोपी ने उनका दाखिला एक अच्छे स्कूल में करवा दिया था।

 एक भाई सुशील जो कि अब 12 वीं विज्ञान वर्ग में अव्वल दर्जे से पास हो हुआ था और नीलेश भी कक्षा 10 में प्रथम श्रेणी से पास हुआ था। रजनी भी अपने भाईयों की तरह पढ़ाई में होशियार थी।

  समय बीतने लगा । गोपी अपने रेस्टोरेंट से होने वाली कमाई को अपने भाई बहनों पर ही खर्च करने लगा , यह सोचकर कि जब ये कुछ बन जाएंगे तो बुढ़ापे में उसका सहारा बनेंगे और उसे कमाने की जरूरत न रहेगी।

  कुछ वर्ष और बीतने लगे गोपी ने सुशील को विदेश भेजकर डॉक्टर की पढ़ाई करवाई और सुशील अब एक बहुत बड़ा डॉ. बन गया था साथ ही नीलेश ने सिविल सर्विसेज की तैयारी की और एक सरकारी अफसर बन गया। रजनी भी अब एक सरकारी स्कूल में अध्यापिका बन गई थी। 

 गोपी ने तीनों का विवाह भी कर दिया था। चूंकि गोपी ने रेस्टोरेंट से होने वाली कमाई का अधिकांश हिस्सा भाई बहनों की पढ़ाई पर ही खर्च किया था , इस कारण वह अपने रेस्टोरेंट को आधुनिक नही बना पाया था और धीरे धीरे ग्राहकों ने रेस्टोरेंट में आना कम कर दिया था।

  धीरे धीरे गोपी का रेस्टोरेंट जर्जर हो गया और ग्राहकों के न आने के कारण बंद सा हो गया। अब तो दिन के केवल एक दो ग्राहक ही आते थे। रेस्टोरेंट पर काम करने वाले मजदूरों की पगार भी नही दे पाने के कारण मजदूरों बने भी आना बंद कर दिया।

  उधर गोपी के भाई बहन अपने अपने परिवार में मस्त रहने लगें । नौकरी मिलने के बाद कभी कभार मिलने आ जाया करते थे लेकिन शादी के बाद मिलने आना तो दूर धीरे धीरे फ़ोन पर बात करना भी बंद कर दिया था।

    धीरे धीरे गोपी की हालत और खराब होने लगी। रेस्टोरेंट बंद होने के बाद अब तो खाने पीने के लिए भी उधार मांगना पड़ता था। लाचार होकर गोपी ने अब रेस्टोरेंट भी बेच दिया और मिलने वाले रुपयों से उधार चुकाया और अपने पेट भरने का जुगाड़ किया। पर कब तक? आखिर में वो रुपये भी खत्म हो गए।

 अब फिर सर भूखों मरने की नौबत सामने थी। एक रात वह अपने बीते दिनों की याद अपनी पत्नी कमला  के साथ बांट रहा था, तो कमला ने अपने गोपी को अपने भाइयों से मदद मांगने की सलाह दी। पत्नी के कहने पर जिस प्रकार सुदामा कृष्ण के पास गए थे , उसी प्रकार गोपी भी अपने भाईयों के पास जाएगा और उनसे मदद पाने के लिए चल पड़ा।

 सबसे पहले वह सुशील के पास गया ( जो कि पड़ोस के शहर में अपना खुद का अस्पताल चला रहा था) , काफी समय बाद सुशील ने गोपी को देखा था । गोपी से परिचय पाकर वह असहज हो गया। सुशील ने औपचारिकता निभाते हुए गोपी को नौकर के साथ अपने घर भेज दिया।

  शाम को सुशील अपने साथ अपने छोटे भाई नीलेश को भी ले आया । शाम को खाना खाते समय सभी साथ बैठें। 

गोपी भाई के आलीशान मकान में अपने आपको असहज महसूस कर रहा था। ढंग से खाना भी नही खा पाया ।

गोपी वहां से जल्दी ही अपने घर  लौटना चाहता था। दोनों के सामने उसने अपनी पीड़ा बताई और आर्थिक सहायता करने के लिए कहा।

तो जवाब में भाइयों ने महंगाई और सर पर कर्ज होने का रोना रो दिया।

गोपी उनकी बातों से समझ चुका था कि इन तिलों में तेल नहीं।

फिर भी आखिरी प्रयास करते हुए बोला कि मैंने तुम लोगों के लिए इतना कुछ किया है, उसे ही याद करके मेरी मदद कर दो।

बीच में ही नीलेश बोल पड़ा :- "तुमने हमारे लिए किया ही क्या है? बस अपनी जिम्मेदारी निभाई है। कुछ नया थोड़े ही किया है? इतना तो हर बड़ा भाई करता है। कुछ नया और अलग किया हो तो बताओ। ये तो हमारी तकदीर और मेहनत है जो आज नौकरी कर रहें है।" सुशील ने भी नीलेश का समर्थन किया।

 बात सुनकर गोपी की आंखों में आंसू छलक उठे, पर अपने आंसुओ को उसने बाहर आने से रोक दिया।

अगली सुबह भाइयों के उठने से पहले ही गोपी वहां से चल दिया। रास्ते में गोपी के दिमाग में शब्द बार बार घूम रहे थे

" तुमने किया ही क्या है?" , "तुमने नया क्या किया है?", और फिर वह सोचने लगता -"आखिर मैनें किया ही क्या है?"।


धन्यवाद।



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