Adsense

तुलसीदास आरोह भाग -2 कवितावली और लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप का भावार्थ या व्याख्या Tulsidas class 12 aaroh bhag-2 vyakhya

 

                कवित्त-1

      (तुलसीदास की कवितावली के उत्तर कांड से उद्धृत)


तुलसीदास आरोह भाग -2 कवितावली और लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप का भावार्थ या व्याख्या Tulsidas class 12 aaroh bhag-2 vyakhya


 

किसबी, किसान कुल, बनिक, भिखारी, भाट,

चाकर, चपल नट, चोर, चार, चेटकी।

पेट को पढ़त, गुन गढ़त, चढ़त गिरि,

अटत गहन-गन अहन अखेटकी॥

ऊँचे नीचे करम धरम अधरम करि,

पेट ही को पचत बेंचत बेटा बेटकी।

तुलसी बुझाइ एक राम घनस्याम ही तें,

आगि बड़वागि तें बड़ी है आगि पेट की॥

 

कठिन शब्दार्थ:- 

किसबी= श्रमजीवी (मजदूर), किसान कुल= किसान का परिवार, बनिक=बनिया/व्यापारी, भाट= चारण (राजाओं का यश वर्णन करने वाला कवि) , चाकर=नौकर, चपल नट=फुर्तीले नट या कलाकार/अभिनेता, चार=दूत (हलकारे),  चेटकी=बाजीगर/जादूगर, पेट को=पेट के लिए , पढत= पढ़ते है, गुन गढ़त= गुणों को गढ़ते हैं (पैदा करते हैं), अटत=घूमना, गहन गन= घना (कठिन) जंगल, अहन=दिन, अखेटकी= आखेट/शिकार,पचत= भरने के लिए,  बेचत=बेचते है, बेटा बेटकी=बेटा-बेटी, बुझाइ=शांत करने/जलने से रोकना, घनस्याम=काला बादल, आगि=आग, बड़बागि तें= समुद्र की आग से,

 

प्रतिपाद्य :-

कवित्त में कवि ने बताया है कि संसार के अच्छे-बुरे समस्त लीला-प्रपंचों का आधार ‘पेट की आग’ का दारुण व गहन यथार्थ है, जिसका समाधान वे राम-रूपी घनश्याम के कृपा-जल में देखते हैं। उनकी रामभक्ति पेट की आग बुझाने वाली यानी जीवन के यथार्थ संकटों का समाधान करने वाली है, साथ ही जीवन-बाह्य आध्यात्मिक मुक्ति देने वाली भी है।

 

व्याख्या:-

श्रमजीवी श्रमिक, किसान का परिवार (किसान वर्ग) , व्यापारी,  भिखारी,  भाट,  सेवक (नौकर),   चंचल नट,  चोर,  दूत और  बाजीगर आदि   सब पेट ही के लिए पढ़ते,  अनेक उपाय (विद्या/गुण) रचते,  पर्वतों पर चढ़ते  और शिकार की खोज में दिन भर  दुर्गम वनों में भटकते हैं। सब लोग पेट के लिए ही ऊँचे-नीचे कर्म तथा धर्म-अधर्म करते  हैं, यहाँ तक कि पेट को भरने के लिए अपने बेटा-बेटी  तक को  बेच देते हैं।  तुलसीदास कहते हैं कि यह पेट की आग समुद्र की आग  से भी बड़ी है;  यह तो केवल एक भगवान राम-रूपी घने बादल  के द्वारा ही बुझाई जा सकती है।

 

कवितावली का काव्य सौन्दर्य

 (क) भाव पक्ष:-

1. तुलसी जी ने समाज की सबसे बड़ी विडम्बना ‘पेट की आग’ को सभी वर्गों के माध्यम से बड़े ही सरल तरीके से उठाकर, भक्ति बल के द्वारा रामभक्ति करके इससे छुटकारा पाने का सरल सुझाव दिया है।

2. समाज में भूख की स्थिति का यथार्थ चित्रण किया गया है।

3. राम की भक्ति-भावना पर बल दिया गया है।

 () कला पक्ष:-

1. लगभग सभी पंक्तियों में अनुप्रास अलंकार का सौन्दर्य बिखरा हुआ है।

            निम्नलिखित में अनुप्रास अलंकार की छटा है-

‘किसबी, किसान-कुल’, ‘भिखारी, भाट’, ‘चाकर, चपल’, ‘चोर, चार, चेटकी’, ‘गुन, गढ़त’, ‘गहन-गन’, ‘अहन अखेटकी ‘, ‘ बचत बेटा-बेटकी’, ‘ बड़वागितें  बड़ी 

2. अभिधा शक्ति को सौन्दर्य प्रदान करने के लिए उपयुक्त शब्दों का चयन है।

3. ऊँच-नीच, धरम-अधरम आदि में विरोधाभास अलंकार है।

4. तुकबन्दी-चेटकी, अखेट की, बेटकी, पेट की आदि तथा नाद् सौन्दर्य द्वारा गेयता का गुण विद्यमान है।

5. कवित्त छंद है।

6. तत्सम शब्दों का अधिक प्रयोग है।

7.  ब्रजभाषा लालित्य है।

8.राम घनस्याम’ में रूपक अलंकार तथा ‘आगि बड़वागितें...पेट की’ में व्यतिरेक अलंकार है।

 

सूक्ष्म प्रश्न:-

1.   इस कवित्त में किन-किन पंक्तियों में कौन-कौन से अलंकार आए हैं?

2.   इस कवित्त की रचना किस भाषा में हुई है?

3.   दुनिया के लोग विभिन्न प्रकार के कार्य क्यों करते हैं?

4.   भूख से परेशान होकर लोग कौन-कौन से बुरे कार्य करने के लिए विवश हो जाते हैं?

5.   पेट की आग को किस आग की तुलना में बड़ी बताया गया है?

6.   तुलसीदास के अनुसार अकाल की स्थिति में दुनिया को भूख से कौन मुक्ति दे सकता है?

7.   रामभक्त कवि तुलसीदास केवल भक्त-कवि नहीं हैं, वे समाज और संसार की पीड़ा से भी अच्छी तरह परिचित हैं।

ये आप कैसे कह सकते हैं?

काव्य-सौंदर्य बोध संबंधी प्रश्न:-

प्रश्न- (क) इन काव्य-पंक्तियों का भाव-सौंदर्य स्पष्ट कीजिए ?

उत्तर- इस समाज में जितने भी प्रकार के काम हैं, वे सभी पेट की आग से वशीभूत होकर किए जाते हैं।’पेट की आग’ विवेक नष्ट करने वाली है। ईश्वर की कृपा के अतिरिक्त कोई इस पर नियंत्रण नहीं पा सकता।

प्रश्न- (ख) पेट की आग को कैसे शांति किया जा सकता है?

उत्तर– पेट की आग भगवान राम की कृपा के बिना नहीं बुझ सकती। अर्थात राम की कृपा ही वह जल है, जिससे इस आग का शमन हो सकता है।

प्रश्न- (ग) काव्यांश के भाषिक सौंदर्य पर टिप्पणी कीजिए। [CBSE 2015]

उत्तर– • पेट की आग बुझाने के लिए मनुष्य द्वारा किए जाने वाले कार्यों का प्रभावपूर्ण वर्णन है।

• काव्यांश कवित्त छंद में रचित है।

• ब्रजभाषा का माधुर्य घनीभूत है।

• ‘राम घनश्याम’ में रूपक अलंकार है। ‘किसबी किसान-कुल’, ‘चाकर चपल’, ‘बेचत बेटा-बेटकी’ आदि में अनुप्रास अलंकार की छटा दर्शनीय है।

 

अन्य प्रश्न-

प्रश्न- (क) पेट भरने के लिए लोग क्या-क्या अनैतिक कार्य करते हैं ?

उत्तर- पेट भरने के लिए लोग धर्म-अधर्म व ऊंचे-नीचे सभी प्रकार के कार्य करते हैं ? विवशता के कारण वे अपनी संतानों को भी बेच देते हैं ?

प्रश्न- (ख) कवि ने समाज के किन-किन लोगों का वर्णन किया है? उनकी क्या परेशानी है ?

उत्तर- कवि ने मज़दूर, किसान-कुल, व्यापारी, भिखारी, भाट, नौकर, चोर, दूत, जादूगर आदि वर्गों का वर्णन किया है। वे भूख व गरीबी से परेशान हैं।

प्रश्न- (ग) कवि के अनुसार, पेट की आग कौन बुझा सकता है? यह आग कैसी है ?

उत्तर- कवि के अनुसार, पेट की आग को रामरूपी घनश्याम ही बुझा सकते हैं। यह आग समुद्र की आग से भी भयंकर है।

प्रश्न- (घ) उन कामों का उल्लेख कीजिए, जिन्हें लोग पेट की आग बुझाने के लिए करते हैं?

उत्तर-  कुछ लोग पेट की आग बुझाने के लिए पढ़ते हैं तो कुछ अनेक तरह की कलाएँ सीखते हैं। कोई पर्वत पर चढ़ता है तो कोई घने जंगल में शिकार के पीछे भागता है। इस तरह वे अनेक छोटे-बड़े काम करते हैं।

 

प्रश्न– (च) तुलसी के समय के समाज के बारे में बताइए।

उत्तर- तुलसीदास के समय का समाज मध्ययुगीन विचारधारा का था। उस समय बेरोजगारी थी तथा आम व्यक्ति की हालत दयनीय थी। समाज में कोई नियम-कानून नहीं था। व्यक्ति अपनी भूख शांत करने के लिए गलत कार्य भी करते थे। धार्मिक कट्टरता व्याप्त थी। जाति व संप्रदाय के बंधन कठोर थे। नारी की दशा हीन थी। उसकी हानि को विशेष नहीं माना जाता था।

 

प्रश्न- (छ) क्या तुलसी युग की समस्याएँ वतमान में समाज में भी विद्यमान हैं? अपने शब्दों में लिखिए।

उत्तर- तुलसी ने लगभग 500 वर्ष पहले जो कुछ कहा था, वह आज भी प्रासंगिक है। उन्होंने अपने समय की मूल्यहीनता, नारी की स्थिति, आर्थिक दुरवस्था का चित्रण किया है। इनमें अधिकतर समस्याएँ आज भी विद्यमान हैं। आज भी लोग जीवन-निर्वाह के लिए गलत-सही कार्य करते हैं। नारी के प्रति नकारात्मक सोच आज भी विद्यमान है। अभी भी जाति व धर्म के नाम पर भेदभाव होता है। इसके विपरीत, कृषि, वाणिज्य, रोजगार की स्थिति आदि में बहुत बदलाव आया है। इसके बाद भी तुलसी युग की अनेक समस्याएँ आज भी हमारे समाज में विद्यमान हैं।

 

प्रश्न-(ज) ‘पेट ही को पचत, बेचत बेटा-बेटकी’ तुलसी के युग का ही नहीं आज के युग का भी सत्य हैं/ भुखमरी में किसानों की आत्महत्या और संतानों (खासकर बेटियों) को भी बेच डालने की हृदय-विदारक घटनाएँ हमारे देश में घटती रही हैं। वर्तमान परिस्थितियों और तुलसी के युग की तुलना करें।

उत्तर- गरीबी के कारण तुलसीदास के युग में लोग अपने बेटा-बेटी को बेच देते थे। आज के युग में भी ऐसी घटनाएँ घटित होती है। किसान आत्महत्या कर लेते हैं तो कुछ लोग अपनी बेटियों को भी बेच देते हैं। अत्यधिक गरीब व पिछड़े क्षेत्रों में यह स्थिति आज भी यथावत है। तुलसी तथा आज के समय में अंतर यह है कि पहले आम व्यक्ति मुख्यतया कृषि पर निर्भर था, आज आजीविका के लिए अनेक रास्ते खुल गए हैं। आज गरीब उद्योग-धंधों में मजदूरी करके जीवन चला सकता है परंतु यह भी सत्य है कि तुलसी युग और वार्तमान में बहुत अंतर  नहीं आया है।

 

प्रश्न- व्याख्या कीजिए-

ऊँचे-नीचे करम, धरम-अधरम करि,

पेट को ही पचत, बेचत बेटा-बेटकी ।

 

उत्तर- तुलसी के युग में लोग पैसे के लिए सभी तरह के कर्म किया करते थे। वे धर्म-अधर्म नहीं जानते थे केवल पेट भरने की सोचते। इसलिए कभी-कभी वे अपनी संतान को भी बेच देते थे।

 

 

कवित्त-2

                   (तुलसीदास की कवितावली के उत्तर कांड से उद्धृत)

 

खेती न किसान को, भिखारी को न भीख, बलि,

बनिक को बनिज, न चाकर को चाकरी।

जीविका बिहीन लोग सीद्यमान सोच बस,

कहैं एक एकन सों, ‘कहाँ जाई, का करी?’

बेदहूँ पुरान कही, लोकहूँ बिलोकिअत,

साँकरे सबै पै, राम! रावरें कृपा करी।

दारिद-दसानन दबाई दुनी, दीनबंधु!

दुरित-दहन देखि तुलसी हहा करी॥

 

सन्दर्भ:-

प्रस्तुत कवित्त रामभक्त कवि तुलसीदास द्वारा रचित काव्य ‘कवितावली’ से अवतरित है।

प्रसंग:-

तुलसीदास जी ने इस काव्य रचना में अपने युग के समाज में व्याप्त बेरोजगारी एवं उससे उत्पन्न गरीबों की दारुण दशा के कारण संघर्षपूर्ण जीवन का उल्लेख करके अपने आराध्य प्रभु श्रीराम से करुणा की प्रार्थना की है। यहाँ कवि ने कलियुग के वर्णन के बहाने अपने युग की यथार्थ स्थिति का चित्रण किया है।

कठिन शब्दार्थ:-

बलि=दान/दक्षिणा, बलि-दान दक्षिणा, बनिज =व्यापार, चक्र=नौकर, चाकरी=नौकरी, जीविकाबिहीन= बेरोज़गार, सीद्यमान=–शोकसंतप्त/चिन्तित होकर, सोच बस=चिंता में पड़कर/सोच में पड़ना, कहैं = कहते / पूछते है , एक एकन सों = एक-दूसरे से, बेदहूं पुरान कही= वेद और पुराण में कहा गया है, लोकहूं बिलोकिअत= लोक (संसार) में भी देखा जा रहा है, सांकरे= सब संकट के समय, रावरें-आप ही/ आपने ही, दारिद-दसानन = दरिद्रता रूपी रावण, दबाई= दबा रहा है, दुनी=दुनिया दीनबन्धु=दुखियों पर दया करने वाला/गरीबों के मित्र, दुरित= पाप, दहन= बुरी तरह जलना, हहा करी= हाहाकार करना, दुखी होना,

 

भावार्थ :-

तुलसीदास अपने युग की गरीबी और भुखमरी का वर्णन करते है| तुलसीदास जी कहते है कि किसान खेती नहीं कर पा रहें है अर्थात गरीबी के कारण किसानों के पास खेती हेतु साधन उपलब्ध नहीं है, भिखारी को भीख और दान/दक्षिणा नहीं मिल रही है,  बनिया का व्यापार नहीं चल रहा है, नौकर को नौकरी के अवसर नहीं मिल रहे है| सभी लोग बेरोजगार है और आजीविका के अभाव में चिंता में पड़कर दु:खी होते हुए एक दूसरे से पूछते रहते है ऐसी स्थिति में अब क्या करें और कहाँ जाएं| वेदों और पुराणों में बताया गया है और संसार में भी देखा गया है कि दुःख के समय में आप ही सब पर दया करते है| हे दीनबंधु ! इस गरीबीरूपी रावण ने इस दुनिया को दबा रखा है| इस दुनिया को पाप की आग से जलते देख कर तुलसी हाहाकार करते है अर्थात बहुत दु:खी होते है अर्थात् अत्यंत कातर होकर आप से सहायता के लिए प्रार्थना करता है।

 

(क) भाव पक्ष:-

1. कवि ने समकालीन युग की विषम सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियों का यथार्थ चित्रण किया है।

2. सामाजिक-नैतिक मूल्यों के हास की स्थिति में ईश्वरभक्त संसार के कष्टों से मुक्ति दिलाने के लिए भगवान से अवतार की प्रार्थना करता है-

जब-जब होई धरम की हानी। बाढ़हिं असुर अधम अभिमानी।।

तब-तब प्रभु धरि बिबिध सरीरा। हरहिं कृपानिधि सज्जन पीरा।।

3.  सभी प्रकार की आर्थिक व सामाजिक विपत्तियों को दूर करने का एक मात्र सुझाव राम की भक्ति को ही माना है।

4. उपयुक्त शब्द चयन से अभिधा शक्ति के सौन्दर्य में वृद्धि हुई है।

5. कवि का भविष्यद्रष्टा रूप स्पष्ट हे।

6. ईश्वर के लिए ‘दीनबंधु’ शब्द का प्रयोग सार्थक है।

 

(ख) कला पक्ष:-

1. साहित्यिक ब्रज भाषा की प्रवाहमयता सर्वत्र विद्यमान हैं। सवैया व कवित्त छन्द का प्रयोग किया गया है।

2. लगभग सभी पंक्तियों में अनुप्रास अलंकार की सौन्दर्य छटा बिखरी हुई है।

3. तत्सम् प्रधान शब्दावली का भावात्मकता व सौन्दर्य के लिए उचित प्रयोग है।

5. अन्तिम पंक्ति में रूपक अलंकार हे।

6. भाषा में माधुर्य और प्रसाद गुण हें।

6. ‘कहाँ जाई, का करी’ शब्दों में दरिद्रता में फँसे लोगों की दशा का चित्रण साकार हुआ है।

7. अलंकार-‘दारिद-दसानन दबाई दुनी दीनबंधु’ में दरिद्रता रूपी रावण में ‘रूपक’ तथा ‘द’ वर्ण की आवृत्ति के कारण ‘अनुप्रास’ अलंकार है।

6. भाषा: ब्रज।

7. छंद: कवित्त।

8. रस: करुण एवं शांत रस।

 

 

 

सूक्ष्म प्रश्न:-

1.   इस कवित्त में किन-किन पंक्तियों में कौन-कौन से अलंकार आए हैं?

2.   इस कवित्त की रचना किस भाषा में हुई है?

3.   कवि ने इस कवित्त में किस समस्या की चर्चा की है?

4.   जीविकाविहीन लोगों की स्थिति को कवि ने किस प्रकार उठाया है?

5.   वेद-पुराण और संसार में तुलसीदास ने क्या देखा है?

6.   दरिद्रता को कवि ने क्या कहा है?

7.    तुलसीदास राम से क्या प्राथना करते हैं?

8. प्रस्तुत कवित्त के आधार पर तत्कालीन आर्थिक परिस्थितियों पर प्रकाश डालिए।

9. जीविका विहीन लोग किस सोच में पड़े रहते हैं?

10.तुलसीदास ने दरिद्रता की तुलना किससे की है और क्यों?

11.इस समस्या पर कैसे काबू पाया जा सकता है।

12.  दोनों कवित्तों के आधार पर सप्ष्ट कीजिए कि तुलसीदास को अपने समय की आर्थिक विषमता की अच्छी समझ थी?

13.  राम से भूख और गरीबी से मुक्ति की प्रार्थना करना तुलसीदास का काव्य-सत्य है, पर क्या यह युग-सत्य भी है? तर्क के आधार पर उत्तर दीजिए।

सोरठा

                                      (तुलसीदास की कवितावली के उत्तर कांड से उद्धृत)

धूत कहौ, अवधूत कहौ, रजपूतु कहौ, जोलहा कहौ कोऊ।

काहू की बेटी सों, बेटा न ब्याहब, काहू की जाति बिगार न सोऊ।

तुलसी सरनाम गुलामु है राम को, जाको, रुचै सो कहै कछु ओऊ।

माँगि कै खैबो, मसीत को सोईबो, लैबो को, एकु न दैबे को दोऊ॥

 

कठिन शब्दार्थ:-

धूत= धूर्त/ दगाबाज, अवधूत=श्रेष्ठ साधू/ संन्यासी, कहौ=कहो, रजपूतु=राजपूत, जोलहा =कपड़ा बुननेवाला, कोऊ=कोई, काहू की=किसी की, बेटीसों=बेटी से, ब्याहब=शादी करना/विवाह करना, सरनाम=प्रसिद्ध, गुलामु=गुलाम/ दास/ सेवक, जाको= जिसको, रुचै=अच्छा लगे,  कछु ओऊ= कुछ और, माँगि कै = मांगकर, खैबों= खाना/भोजन करना, मसीत=मस्जिद, लैबोको एकु न दैबको दोऊ = लेना एक न देना दो/ किसी से कोई  मतलब न रखना/ दुनियादारी से दूर ,

संदर्भ:-  यह  पद्य (सवैया) 'कवितावली" के ' अयोध्याकांड में से लिया गया है। इसके रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी हैं।

व्याख्या:-

चाहे कोई मुझे धूर्त कहे अथवा संन्यासी कहे, चाहे राजपूत कहे या जुलाहा कहे, मुझे किसी की बेटी से अपने बेटे का ब्याह तो करना नहीं है, न मैं किसी से संपर्क रखकर उसकी जाति ही बिगाड़ूँगा। तुलसीदास तो श्रीराम का प्रसिद्ध ग़ुलाम है, जिसको जो अच्छा लगे वो सो कहो। मुझको तो माँग के खाना और मसजिद (देवालय) में सोना है, न किसी से एक लेना है, न दो देना है।

 

 

कवितावली का काव्य सौन्दर्य

(क) भाव पक्ष:-

1. तुलसी जी ने मस्तमौला व फक्कड़ जीवन जीते हुए राम की सच्ची भक्ति पर बल दिया है।

2. तुलसी की सामंतविरोधी मूल्य-चेतना का वर्णन किया गया है।

3. समय और समाज का यथार्थ-चित्रण किया गया है।

 

(ख) कला पक्ष

1. विरोधाभास अलंकार प्रयोग हुआ है।

2. तुलसी जी ने सरल, साहित्यिक ब्रज भाषा के सुन्दर रूप का प्रयोग किया है।

3. काव्यगत शैली में तुकबन्द व नाद सौन्दर्य के कारण गेयता विद्यमान है।

4. संस्कृतनिष्ठ शब्दावली का भी उचित प्रयोग है।

5- ‘लैबोको एकु न दैबको दोऊ’ में मुहावरे का प्रयोग काव्य सौन्दर्य में वृद्धि करता है।

 

सूक्ष्म प्रश्न:-

1.   छंद और भाषा का नाम बताइए।

2.   कविता की भाषा पर टिप्पणी कीजिए।

3.   लोग तुलसीदास को क्या-क्या कहते रहे होंगे?

4.   अपनी किन विशेषताओं के कारण तुलसीदास लोगों की बातों का सामना कर पाते हैं?

5.   तुलसीदास का हृदय स्वाभिमानी भक्त का हृदय है। कैसे?

6.   जाति-धर्म को लेकर तुलसीदास का क्या दृष्टिकोण रहा होगा?

7.   तुलसीदास कहते हैं कि ‘काहू की बेटीसों बेटा न ब्याहब, काहू की जाति बिगार न सोऊ’...अगर वे काहू की बेटीसों बेटा न ब्याहब के स्थान पर काहू की बेटासों बेटी न ब्याहब कहते तो सामाजिक अर्थ में क्या परिवर्तन आता?

 

लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप का भावार्थ या व्याख्या

1.       तव प्रताप उर राखि प्रभु जैहउँ नाथ तुरंत ।

अस कहि आयसु पाइ पद बंदि चलेउ हनुमंत॥

भरत बाहु बल सील गुन प्रभु पद प्रीति अपार ।

मन महुँ जात सराहत पुनि पुनि पवनकुमार ॥

कठिन शब्दार्थ:- 

तव = तुम्हारा,  प्रताप = बल,  उर = हृदय,  राखि = रखकर, जैह = जाऊँगा,  तुरंत = इसी समय, अभी,   अस = ऐसा, इस तरह,  आयसु = आज्ञा,  पद = चरण, पैर, पाँव, बंदि = बंदना, बाहुबल = भुजाओं की शक्ति,  सील = शील,  गुन = गुण,       पद = पैर, प्रीति = प्यार, अपार = असीम/ अनंत,  महुँ = में, सराहत = बड़ाई कर रहे हैं, पुनि-पुनि =बार-बार/ फिर-फिर, पवनकुमार = पवन पुत्र अर्थात् हनुमान।

प्रसंग:-

प्रस्तुत काव्यांश  हमारी पाठ्य-पुस्तक ‘आरोह‘ में संकलित गोस्वामी तुलसीदास की रचना ‘लक्ष्मण मूर्च्छा और राम का विलाप‘ शीर्षक से उद्धृत है। मुख्य रूप से यह’रामचरित मानस‘ से लिया गया है। इस अंश में रामभक्त कवि ‘गोस्वामी तुलसीदास’ जी ने संजीवनी लाते समय हनुमान व भरत के संवाद का वर्णन किया है।

लक्ष्मण मूर्च्छा और राम का विलाप का सन्दर्भ :-

यह दोहा छन्द उस समय का है जब हनुमान जी संजीवनी का पता न होने पर सारे पर्वत को उठाकर अयोध्या नगरी के ऊपर से गुजरे। तो भरत ने उन्हें राक्षस समझकर बाण से घायल कर दिया और बाद में उन्हें रामभक्त पाने पर उनका स्वागत किया। इसके बाद जब हनुमान जी वहाँ से जाने लगे तो उनके यह शब्द हैं|

व्याख्या:-

 हनुमान जी भरत जी से कहते हैं कि हे नाथ! मैं आप का प्रताप अपने हृदय में रख कर तुरंत चला जाऊँगा। ऐसा कह कर और भरत जी से आज्ञा प्राप्त कर उन के चरणों की वंदना कर हनुमान जी चले भरत जी के बाहुबल, शील, गुण और प्रभु राम के चरणों में उन के अपार प्रेम की मन-ही-मन बार-बार सराहना करते हुए पवनपुत्र हनुमान जी चले जा रहे हैं।

विशेष / लक्ष्मण मूर्च्छा और राम का विलाप का काव्य सौन्दर्य:-

 (क) भाव पक्ष

1. तुलसीदास जी ने इस दोहे में भरत व हनुमान जी दोनों के अटूट प्रेम व भक्ति को राम के प्रति दर्शाया है।

2. हनुमान की भक्ति व भरत के गुणों का वर्णन हुआ है

3. भरत द्वारा अतिथि सत्कार व हनुमान के दास्य भाव का वर्णन किया है।

4. अभिधा शब्द शक्ति का प्रयोग चुनिंदा शब्दों में सराहनीय है।

(ख) कला पक्ष

1. तुलसी ने ठेठ अवधी भाषा का साहित्यिक रूप सुमधुर व प्रभावपूर्ण ढंग से किया है।

2. मन महुँ’, ‘पुनि-पुनि पवन कुमार’, ‘पाइ पद’ में अनुप्रास अलंकार की छवि सौन्दर्यात्मक हैं।

3. ‘पुनि-पुनि’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार विद्यमान है।

4. बाहु, प्रीति आदि शब्दों में तत्सम् शब्दावली का प्रयोग किया गया है।

प्रश्न:-

(क) कवि तथा कविता का नाम बताइए?

उत्तर:- कवि-तुलसीदास।

            कविता-लक्ष्मण-मूच्छी और राम का विलाप। 

(ख) हनुमान ने भरत जी को क्या आश्वासन दिया?

उत्तर:- हनुमान जी ने भरत जी को यह आश्वासन दिया कि “हे नाथ! मैं आपका प्रताप हृदय में रखकर तुरंत संजीवनी बूटी लेकर लंका पहुँच जाऊँगा। आप निश्चित रहिए।”

 

(ग) हनुमान ने भरत से क्या कहा?

उत्तर:- हनुमान ने भरत से कहा कि “हे नाथ! मैं आपके प्रताप को मन में धारण करके तुरंत जाऊँगा।”

(घ) हनुमान भरत की किस बात से प्रभावित हुए?

उत्तर:-   हनुमान भरत की रामभक्ति, शीतल स्वभाव व बाहुबल से प्रभावित हुए।

(ङ) हनुमान ने सकट में धैर्य नहीं खोया। वे वीर एवं धैर्यवान थे-स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:-  मेघनाथ का बाण लगने से लक्ष्मण घायल व मूर्चिछत हो गए थे। इससे श्रीराम सहित पूरी वानर सेना शोकाकुल होकर विलाप कर रही थी। ऐसे में हनुमान ने विलाप करने की जगह धैर्य बनाए रखा और संजीवनी लेने गए। इससे स्पष्ट होता है कि हनुमान वीर एवं धैर्यवान थे।

 

2.       उहाँ राम लछिमनहि निहारी। बोले बचन मनुज अनुसारी ॥

अर्ध राति गई कपि नहिं आयउ । राम उठाइ अनुज उर लायऊ॥

सकहु न दुखित देखि मोहि काऊ । बंधु सदा तव मृदुल सुभाऊ ॥

मम हित लागि तजेहु पितु माता । सहेहु बिपिन हिम आतप बाता ॥

सो अनुराग कहाँ अब भाई । उठहु न सुनि मम बच बिकलाई ||

जौं जनतेउँ बन बंधु बिछोहू । पिता बचन मनतेउँ नहिं ओहू ||

कठिन शब्दार्थ:–

उहाँ = वहाँ, लछिमनहि = लक्ष्मण को, निहारी = देखा, मनुज-अनुसारी = मनुष्य के अनुसार, अर्ध = आधी,               राति = रात, कपि = वानर अर्थात् हनुमान, आयउ = आए, अनुज = छोटा भाई लक्ष्मण,  उर = हृदय,  लायऊ = लगाया, सकहु = सके, दुखित = दुखी, मोहि = मुझे, बंधु = भाई, तव = तुम्हारा, मृदुल = कोमल, सुभाऊ = स्वभाव, मम = मेरा, हित = भला, लागि = तथा, तजेहु = छोड़ दिया, सहेहु = सहन किया, हिम = बर्फ /सर्दी, आतप = गर्मी, बाता = वायु, आंधी,

सो = वह, अनुराग = प्रेम, प्रीति, लगाव, उठहु = उठो, बच = वचन, बिकलाई = व्याकुल, जाँ = यदि,  जनतेउँ = जानता, बंधु = भाई अर्थात् लक्ष्मण, बिछोहू =बिछोह/ विरह,  मनतेउँ = मानता, ओहू = आऊं,

प्रसंग:-

          प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘लक्ष्मण मूर्छा और राम का विलाप’ प्रसंग से उद्धृत है। यह प्रसंग रामचरितमानस के लंकाकांड से लिया गया है। इसके रचयिता कवि तुलसीदास हैं। इसमें कवि ने लक्ष्मण मूर्छा के समय श्रीराम की करुण दशा में करुण विलाप कामार्मिक चित्रण किया है।

व्याख्या:-

          वहाँ लक्ष्मण को निहारते हुए श्रीराम सामान्य आदमी के समान विलाप करते हुए कहने लगे कि आधी रात बीत गई है पर अभी तक हनुमान नहीं आए। उन्होंने लक्ष्मण को उठाकर सीने (हृदय) से लगाया। वे बोले कि “तुम मुझे कभी दुखी नहीं देख पाते थे। तुम्हारा स्वभाव सदैव कोमल व विनम्र रहा। मेरे लिए ही तुमने माता-पिता को त्याग दिया और जंगल में ठंड, धूप, तूफ़ान आदि को सहन किया। हे भाई! अब वह प्रेम कहाँ है? तुम मेरी व्याकुलतापूर्ण बातों को सुनकर उठते क्यों नहीं। यदि मैं यह जानता होता कि वन में तुम्हारा वियोग सहना पड़ेगा तो मैं पिता के वचनों को भी नहीं मानता और वन में नहीं आता।

विशेष / लक्ष्मण मूर्च्छा और राम का विलाप का काव्य सौन्दर्य:-

(क) भाव पक्ष

1.  राम का मानवीय रूप एवं उनके विलाप का मार्मिक वर्णन है।

2. राम जी के व्याकुल व अशांत मन की दशा का मार्मिकता पूर्ण वर्णन तुलसी जी ने इन दोहों में किया है।

3. लक्ष्मण के चारित्रिक गुणों- भक्ति भाव, दास्य भाव, आज्ञा पालन, त्याग भावना, भ्रातृ प्रेम का श्रीराम जी द्वारा व्याख्यान अत्यंत मनोहारी रूप में किया है ।

(ख) कला पक्ष

1. तुलसी द्वारा ठेठ अवधी भाषा का सुमधुर व प्रवाहमयी रूप में प्रयोग हुआ है।

2. चौपाई छंद है और गति, लय, तुक द्वारा काव्य में गेयता गुण विद्यमान है।

3. करूण रस का सुन्दर प्रयोग है।

4. दृश्य बिंब है।

5. अलंकारों की छटा से पूरा काव्यांश व्याप्त है|

6. ‘बोले बचन’, ‘दुखित देखि’, ‘बन बंधु बिछोहू’, ‘बच बिकलाई’ में अनुप्रास अलंकार का सुन्दर प्रयोग है।

प्रश्न:-

(क) रात अधिक होते देख राम ने क्या किया?

उत्तर:- रात अधिक होते देख राम व्याकुल हो गए। उन्होंने लक्ष्मण को उठाकर अपने हृदय से लगा लिया।

(ख) राम ने लक्ष्मण की किन-किन विशेषताओं को बताया?

उत्तर:- राम ने लक्ष्मण की निम्नलिखित विशेषताएँ बताई-

(i) वे राम को दुखी नहीं देख सकते थे।

(ii) उनका स्वभाव कोमल था।

(iii) उन्होंने माता-पिता को छोड़कर उनके लिए वन के कष्ट सहे।

(ग) लक्ष्मण ने राम के लिए क्या-क्या कष्ट सहे?

उत्तर:- लक्ष्मण ने राम के लिए अपने माता-पिता को ही नहीं, अयोध्या का सुख-वैभव त्याग दिया। वे वन में राम के साथ रहकर नाना प्रकार की मुसीबतें सहते रहे।

(घ) ‘सो अनुराग’ कहकर राम कैसे अनुराग की दुलभता की ओर संकेत कर रहे हैं? सोदाहरण लिखिए।

उत्तर:- ‘सो अनुराग’ कहकर राम ने अपने और लक्ष्मण के बीच स्नेह की तरफ संकेत किया है। ऐसा प्रेम दुर्लभ होता है कि भाई के लिए दूसरा भाई अपने सब सुख त्याग देता है। राम भी लक्ष्मण की मूच्छी मात्र से व्याकुल हो जाते हैं।

 

 

 

3.         सुत बित नारि भवन परिवारा। होहिं जाहिं जग बारहिं बारा ॥

अस बिचारि जियँ जागहु ताता। मिलइ न जगत सहोदर भ्राता ॥

जथा पंख बिनु खग अति दीना । मनि बिनु फनि करिबर कर हीना ॥

अस मम जिवन बंधु बिनु तोही । जौं जड़ दैव जिआवै मोही ॥

जैहउँ अवध कवन मुहु लाई । नारि हेतु प्रिय भाइ गँवाई ।।

बरु अपजस सहतेउँ जग माहीं। नारि हानि बिसेष छति नाहीं ॥

कठिन शब्दार्थ:–

            सुत = बेटा, पुत्र, बित= धन/ संपत्ति, नारि = स्री /पत्नी, भवन = घर/ महल, परिवारा = परिवार/ कुल, होहिं=आते हैं, जाहि= जाते हैं, जग = संसार, बारहिं = बार, अस = ऐसा / इस तरह,  विचारि = सोचकर, जियँ = ह्रदय, जागहु= मूर्च्छा छोड़कर उठो, ताता = भाई/ भाई के लिए संबोधन सहोदर=एक ही माँ की कोख से जन्मे, भ्राता- भाई,  जथा= जिस प्रकार, बिनु=के बिना, खग=पक्षी, दीना=दीन-हीन, मनि=नागमणि, फनि=साँप, करिबर=श्रेष्ठ हाथी,  कर=सूंड़, हीना= से रहित, अस=ऐसा, मम= मेरा, जिवन=जीवन, बंधु=भाई, तोही=तुम्हारे, जौं=यदि, जड़= कठोर, दैव=भाग्य, जिआवै= जीवित रखे, मोही= मुझे, जैहऊँ=जाऊँगा,कवन=कौन-सा, मुहुँ=मुख, लाई=लेकर, नारि=नारी/पत्नी/स्त्री, हेतु=के लिए, गवाड़=खोकर, बरु=चाहे/भले ही , अपजस=अपयश, सहतेऊँ=सहन करता, माहीं=में, बिसेष=खास, छति=हानि/ नुकसान,

प्रसंग:-

प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘लक्ष्मण-मूच्छी और राम का विलाप’ प्रसंग से उद्धृत है। यह प्रसंग रामचरितमानस के लंकाकांड से लिया गया है। इसके रचयिता तुलसीदास हैं। इस प्रसंग में लक्ष्मण-मूर्च्छा पर राम के विलाप का वर्णन है।

व्याख्या:-

यहाँ राम लक्ष्मण की मूर्छित अवस्था को देखकर बहुत ज्यादा विचलित हो रहे हैं | राम कह रहे हैं कि वह अयोध्या जाकर लोगों के प्रश्नों का क्या उत्तर देंगे |

भाई लक्ष्मण ! इस संसार में पुत्र, धन, स्त्री, भवन और परिवार बार-बार मिल जाते हैं और नष्ट हो जाते हैं, किंतु संसार में सगा भाई दुबारा नहीं मिलता। यह विचार करके, हे तात, तुम जाग जाओ। हे लक्ष्मण! जिस प्रकार पंख के बिना पक्षी, मणि के बिना साँप, सूँड के बिना हाथी अत्यंत दीन-हीन हो जाते हैं, उसी प्रकार तुम्हारे बिना मेरा जीवन व्यर्थ है। हे भाई! तुम्हारे बिना यदि भाग्य मुझे जीवित रखेगा तो मेरा जीवन भी इन सबके समान (पंखविहीन पक्षी, मणि विहीन साँप और सँड़ विहीन हाथी के समान) हो जाएगा। राम चिंता करते हैं कि वे कौन-सा मुँह लेकर अयोध्या जाएँगे? लोग कहेंगे कि पत्नी के लिए प्रिय भाई को खो दिया। मैं पत्नी के खोने का अपयश सहन कर लेता, क्योंकि नारी की हानि विशेष नहीं होती।

लक्ष्मण मूर्च्छा और राम का विलाप का काव्य सौन्दर्य:-

(क) भाव पक्ष

1. इन दोहों से पता चलता है कि रामचन्द्र जी के हृदय में भ्रातृ प्रेम कूट-कूट कर भरा हुआ है।

2. अभिधा शब्द शक्ति का भावात्मकता की वृद्धि हेतु बहुत सुन्दर प्रयोग है।

3. राम का भ्रातृ-प्रेम प्रशंसनीय है।

 

(ख) कला पक्ष

1. तुलसी जी ने अवधी भाषा के प्रवाहपूर्ण साहित्यिक रूप का वर्णन किया हैं।

2. तत्सम् प्रधान शब्दावली का प्रचुर मात्रा में प्रयोग है।

3. चौपाई छंद का सुंदर प्रयोग है।

4. करुण रस है।

5. दृश्य बिंब है।

6. जथा पंख तोही’ में उदाहरण अलंकार है।

7. ‘जाहिं जग’, ‘बारहिं बारा’, ‘बंधु बिनु’, ‘करिबर कर’ आदि में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है।

8. पक्षी, सर्प व हाथी द्वारा उदाहरण अलंकार द्वारा प्रतीकात्मक भाव स्पष्ट हुआ है।

काव्यांश सम्बन्धी प्रश्न:-

(क) काव्यांश के आधार पर राम के व्यक्तित्व पर टिप्पणी कीजिए।

उत्तर:-  इस काव्यांश में राम का आम आदमी वाला रूप दिखाई देता है। वे लक्ष्मण के प्रति स्नेह व प्रेमभाव को व्यक्त करते हैं तथा संसार के हर सुख से ज्यादा सगे भाई को महत्व देते हैं।

(ख) राम ने भ्रातृ-प्रेम की तुलना में किनको हीन माना है?

उत्तर:- राम ने भ्रातृ-प्रेम की तुलना में पुत्र, धन, स्त्री, घर और परिवार सबको हीन माना है। उनके अनुसार, ये सभी चीजें आती-जाती रहती हैं, परंतु सगा भाई बार-बार नहीं मिलता।

(ग) राम को लक्ष्मण के बिना अपना जीवन कैसा लगता है?

उत्तर:- राम को लक्ष्मण के बिना अपना जीवन उतना ही हीन लगता है जितना पंख के बिना पक्षी, मणि के बिना साँप तथा सूँड के बिना हाथी का जीवन हीन होता है।

(घ) ‘जैहउँ अवध कवन मुहुँ लाई’ – कथन के पीछे निहित भावना पर टिप्पणी कीजिए।

उत्तर:-  इस कथन से श्रीराम का कर्तव्यबोध झलकता है। वे अपनी जिम्मेदारी पर लक्ष्मण को अपने साथ लाए थे, परंतु वे अपना कर्तव्य पूरा न कर सके। अत: वे अयोध्या में अपनी जवाबदेही से डरे हुए थे।

4.       अब अपलोकु सोकु सुत तोरा। सहहि निठुर कठोर उर मोरा।।

निज जननी के एक कुमारा । तात तासु तुम्ह प्रान अधारा।।

सौंपेसि मोहि तुम्हहि गहि पानी। सब बिधि सुखद परम हित जानी।।

उतरु काह दैहऊँ तेहि जाई। उठि किन मोहि सिखावहु भाई।।

बहु बिधि सोचत सोचि बिमोचन । स्त्रवत सलिल राजिव दल लोचन।।

उमा एक अखंड रघुराई। नर गति भगत कृपालु देखाई।।

कठिन शब्दार्थ:-

अपलोकु=अपयश,  सोकु=शोक/दुःख, सूत=पुत्र (यहाँ लक्ष्मण), तोरा=तेरा/तुम्हारा, सहहि= सहन कर लेगा,         निठुर= निष्ठुर/कठोर,  उर= हृदय,  निज= अपनी,  जननी= माँ,  कुमारा= पुत्र,  तात=पिता,  तासु=उसके,  प्रान अधारा= प्राणों के आधार,  सौंपेसि = सौपा था,  मोहि= मुझे,  गहि= पकड़कर,  पानी= हाथ, विधि=तरह/प्रकार,  हित= हितैषी,  जानी= जानकर,  उतरु= उत्तर, दैहऊँ=दूँगा, काह= क्या,  तेहि=उसे, जाई=जाकर, उठि=उठकर, किन= क्यों नहीं, सिखावहु=सिखाओ/समझाओं, सोचत=चिंतित/शोकसंतप्त है, सोच बिमोचन= चिंता दूर करने वाले राम,  स्त्रवत= टपकता है/चूता है,  सलिल= जल,  राजिव दल= कमल की पंखुडियां,  लोचन=नेत्र/आँख, उमा=पार्वती, अखंड=सम्पूर्ण, नर गति = जैसा आचरण/ दशा, भगत कृपालु= भक्तों पर कृपा करने वाले राम |

प्रसंग:-

प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप’ प्रसंग से उद्धृत है। यह प्रसंग रामचरितमानस के लंका कांड से लिया गया है। इसके रचयिता तुलसीदास हैं। इस प्रसंग में लक्ष्मण-मूर्च्छा पर राम के विलाप  का वर्णन किया गया है।

व्याख्या:-

लक्ष्मण के होश में न आने पर राम विलाप करते हुए कहते हैं कि मेरा निष्ठुर व कठोर हृदय अपयश और तुम्हारा शोक दोनों को सहन करेगा। हे तात! (हे लक्ष्मण!) तुम अपनी माता के एक ही पुत्र हो तथा उसके प्राणों के आधार हो। उसने सब प्रकार से सुख देने वाला तथा परम हितकारी जानकर ही तुम्हें मुझे सौंपा था। अब उन्हें मैं क्या उत्तर दूँगा? तुम स्वयं उठकर मुझे कुछ बताओ। इस प्रकार राम ने अनेक प्रकार से विचार किया और उनके कमल रूपी सुंदर नेत्रों से आँसू बहने लगे। शिवजी कहते हैं- हे उमा ! श्री रामचंद्र जी अद्वितीय और अखंड हैं। भक्तों पर कृपा करने वाले भगवान ने मनुष्य की दशा दिखाई है।

लक्ष्मण मूर्च्छा और राम का विलाप का काव्य सौन्दर्य:-

(क) भाव पक्ष

1.  राम की व्याकुलता का सजीव वर्णन है।

2. आखिरी दोहे में श्री रामचन्द्र जी के दोनों रूप- लौकिक व अलौकिक प्रकट हुए हैं।

(ख) कला पक्ष

1. पहले दो दोहों में अभिधा शब्द शक्ति तथा तीसरे में लाक्षणिकता का सुन्दर प्रयोग किया गया है।

2. संस्कृतनिष्ठ शब्दावली के साथ ठेठ अवधी भाषा का साहित्यिक रूप का सुन्दर प्रयोग है।

3. चौपाई छन्द शैली काव्य सौन्दर्य में वृद्धि करता है।

4. दृश्य बिंब है।

5. करुण रस है।

6. ‘राजिव दल लोचन’ में रूपक अलंकार प्रयुक्त हुआ है।

7. अब-अप, सोकु सुत, ‘तात तासु तुम्ह’, ‘बहु विधि’, ‘सोचत सोच’, ‘स्रवत सलिल’, ‘प्रभु प्रताप’ आदि में अनुप्रास अलंकार है।

 

प्रश्न:-

(क) व्याकुल श्रीराम अपना दुख कैसे प्रकट कर रहे हैं?

उत्तर:- व्याकुल श्रीराम आपना दुख प्रकट करते हुए कहते हैं कि वे कठोर हृदय से लक्ष्मण के वियोग व अपयश को सहन कर लेंगे, परंतु अयोध्या में सुमित्रा माता को क्या जवाब देंगे।

(ख) श्रीराम सुमित्रा माता का स्मरण करके क्यों दुखी हो उठते हैं?

उत्तर:- श्रीराम सुमित्रा माता के विषय में चिंतित हैं, क्योंकि उन्होंने राम को हर तरह से हितैषी मानकर लक्ष्मण को उन्हें सौंपा था। अत: वे उन्हें लक्ष्मण की मृत्यु का जवाब कैसे देंगे। वे लक्ष्मण से ही इसका जवाब पूछ रहे हैं।

 

5. सोरठ

प्रभु प्रलाप सुनि कान, बिकल भए बानर निकर।

आइ गयउ हनुमान, जिमि करुना महं बीर रस।। 

कठिन शब्दार्थ:-

प्रभु= श्रीराम, प्रलाप= व्याकुलता के कारण/ तर्कहीन, सुनि=सुनकर, कान=कानों से, विकल=परेशान, निकर=समूह,   आइ गयउ= आ गये, जिमि= जैसे, करुना= करुणा/करुणा रस, मँह= में, बीर रस= वीरता/वीर रस

प्रसंग:-

प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप’ प्रसंग से उद्धृत है। यह प्रसंग रामचरितमानस के लंका कांड से लिया गया है। इसके रचयिता तुलसीदास हैं। इस प्रसंग में संजीवनी बूटी लेकर हनुमान के वापस आने का वर्णन किया गया है।

व्याख्या:-

तुलसीदास जी कहते हैं कि मूर्च्छित लक्ष्मण को देखकर श्रीराम ऐसे विलाप करने लगे जैसे कोई साधारण मनुष्य करता हो। प्रभु श्री रामचंद्र जी का विलाप सुनकर वानरों के झुण्ड व्याकुल हो | तभी उसी समय हुनमान जी संजीवनी बूटी लेकर आ गये, तो ऐसा लगा जैसे करुणा में वीर रस प्रकट हो गया हो।

लक्ष्मण मूर्च्छा और राम का विलाप का काव्य सौष्ठव:-

(क) भाव पक्ष

1.  तुलसीदास जी ने श्रीरामचंद्र के विलाप के समय हनुमान द्वारा संजीवनी बूटी लाना दर्शाकर वातावरण में करूणा  के स्थान पर वीर रस का समावेश करके अपने काव्य-कौशल का परिचय दिया है।

(ख) कला पक्ष

1. संस्कृतनिष्ठ शब्दावली के साथ साहित्यिक अवधी भाषा का सुंदर प्रयोग किया गया है।

2. सोरठा छंद का प्रयोग काव्य में सौंदर्य की वृद्धि करता है।

3. प्रभु प्रलाप में अनुप्रास अलंकार का प्रयोग है। करूण रस का सुंदर प्रयोग किया गया है।

 

प्रश्न:-

(क) ‘नर गति’ शब्द का यहाँ क्या अर्थ है?

उत्तर:- इसका अर्थ यह है कि राम ने मानवरूप में जन्म लिया। उन्हें धरती पर होने वाली हर घटना का पूर्व ज्ञान है, परंतु वे लक्ष्मण-मूर्च्छा पर साधारण मानव की तरह व्यवहार कर रहे हैं।

(ख) हनुमान के आगमन का वानर सेना पर क्या प्रभाव पड़ा?

उत्तर:-  हनुमान के आगमन से वानर सेना में उत्साह आ गया। ऐसा लगा जैसे करुण रस के प्रसंग में वीर रस का संचार हो गया।

6.         हरषि राम भेटेउ हनुमाना। अति कृतग्य प्रभु परम सुजाना।

तुरत बैद तब कीन्हि उपाई। उठि बैठे लछिमन हरषाई ॥

हृदयँ लाइ प्रभु भेंटेउ भ्राता । हरषे सकल भालु कपि ब्राता ॥

कपि पुनि बैद तहाँ पहुँचावा । जेहि बिधि तबहिं ताहि लइ आवा ॥

 

कठिन शब्दार्थ:-

हरषि=खुश होकर,  भेटेउ= गले लगाकर प्रेम प्रकट किया,  अति= बहुत अधिक,  कृतग्य= कृतज्ञ/आभारी,                  सुजाना=  चतुर/अच्छा ज्ञानी/ समझदार,  तुरत=शीघ्र, बैद= वैद्य (सुषेण),  कीन्हि= किया,  उपाई= उपाय/उपचार,  उठि बैठे= उठकर बैठ गए, लछिमन= लक्ष्मण, हरषाई=प्रसन्न होकर, लाइ = लगाया, भेंटेउ=आलिंगन किया,  भ्राता– भाई,  हरषे= खुश हुए,  सकल= समस्त,  ब्राता= समूह/ झुण्ड, पुनि= पुन:/ दुबारा,  जेहि= जिस, ताहि= उसको, लई आवा= लेकर आए थे,     

प्रसंग:-

प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप’ प्रसंग से उद्धृत है। यह प्रसंग रामचरितमानस के लंका कांड से लिया गया है। इसके रचयिता तुलसीदास हैं। इस काव्यांश में श्रीराम प्रसन्न होकर हनुमान से भेंट करते हैं तथा वैद्य तुरंत ही लक्ष्मण का उपचार करते हैं |

व्याख्या:-

हनुमान के आने पर राम ने प्रसन्न होकर उन्हें गले से लगा लिया। परम चतुर और एक समझदार व्यक्ति की तरह भगवान राम ने हनुमान के प्रति अपनी कृतज्ञता प्रकट की। वैद्य ने शीघ्र ही उपचार किया जिससे लक्ष्मण उठकर बैठ गए और बहुत प्रसन्न हुए। लक्ष्मण को राम ने गले से लगाया। इस दृश्य को देखकर भालुओं और वानरों के समूह में खुशी छा गई। हनुमान ने वैद्यराज सुषेण को वहाँ उसी तरह पहुँचा दिया जहाँ से वे उन्हें लेकर आए थे।

लक्ष्मण मूर्च्छा और राम का विलाप का काव्य सौष्ठव:-

(क) भाव पक्ष

1. तुलसीदास जी ने इन पंक्तियों के माध्यम से श्री राम जी के कृतज्ञ होने की तथा सेवक द्वारा भी उपकार को मानने की बात को महत्त्व दिया है |

2. लक्ष्मण के ठीक होने पर वानर सेना व राम की खुशी का वर्णन है।

(ख) कला पक्ष

1. ठेठ अवधी भाषा के साहित्यिक रूप का तत्सम् प्रधान पदावली में सौन्दर्यपूर्ण प्रयोग है।

2. चौपाई छंद शैली की महत्ता काव्य को पूर्ण विकसित करती हैं।

3. करुण रस व भयानक रसों की प्रधानता है।

4. प्रभु परम’, ‘तबहिं ताहि आदि में अनुप्रास अलंकार का सुन्दर रूप से प्रयोग हैं।

   5. घटना क्रम में तीव्रता है।

 

 

प्रश्न :-

(क) हनुमान के आने पर राम ने क्या प्रतिक्रिया जताई?

उत्तर:- हनुमान के आने पर राम प्रसन्न हो गए तथा उन्हें गले से लगाया। उन्होंने हनुमान के प्रति कृतज्ञता व्यक्त की।

(ख) लक्ष्मण की मूर्च्छा किस तरह टूटी?

उत्तर:- सुषेण वैद्य ने संजीवनी बूटी से लक्ष्मण का उपचार किया। परिणामस्वरूप उनकी  मूर्च्छा टूटी और लक्ष्मण हँसते हुए उठ बैठे।

(ग) किस घटना से वानर सेना प्रसन्न हुई?

उत्तर:- लक्ष्मण के ठीक होने पर प्रभु राम ने उन्हें गले से लगा लिया। इस दृश्य को देखकर सभी बंदर, भालू व हनुमान प्रसन्न हो गए।

(घ) ‘जेहि विधि तबहिं ताहि लद्ध लावा। ‘- पंक्ति का आशय स्पष्ट कीजिए।

उत्तर:- इसका अर्थ यह है कि हनुमान जिस तरीके से सुषेण वैद्य को उठाकर लाए थे, उसी प्रकार उन्हें उनके स्थान पर पहुँचा दिया।

 

7.       यह बृतांत दसानन सुनेऊ। अति बिषाद पुनि पुनि सिर धुनेऊ ॥

ब्याकुल कुंभकरन पहिं आवा। विविध जतन करि ताहि जगावा॥

जागा निसिचर देखिअ कैस। मानहुँ कालु देह धरि बैंस ।।

कुंभकरन बूझा कहु भाई । काहे तव मुख रहे सुखाई।।

कठिन शब्दार्थ:-

बृतांत=वर्णन,  बिषाद=दुःख, सिर धुनेऊ= सिर पीटने लगा/ पछताया, ब्याकुल=परेशान, पहिं= पास,  बिबिध=अनेक,  जतन= उपाय/ प्रयास,  करि= करके,  ताहि= उसे,  जगावा=जगाया,  निसिचर=राक्षस अर्थात कुंभकरण, मानहुँ =मानो,            कालु= मृत्यु/मौत,  देह= शरीर,  धरि= धारण करके,  बैंसा= बैठा, बूझा= पूछा,  कहु=कहो,  काहे=क्यों,  तव= तेरा,  सुखाई= सूख रहा है,

प्रसंग:-

प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप’ प्रसंग से उद्धृत है। यह प्रसंग रामचरितमानस के लंका कांड से लिया गया है। इसके रचयिता तुलसीदास हैं।

इस काव्यांश में यह बताया गया है कि लक्ष्मण के होश में आने से रावण किस प्रकार व्याकुल हो उठा तथा अपने भाई कुम्भकरण के पास चला गया |

व्याख्या:-

यह समाचार जब रावण ने सुना, तब उसने अत्यंत विषाद से बार-बार सिर पीटा । वह व्याकुल होकर कुंभकर्ण के पास गया और बहुत से उपाय करके उसने उसको जगाया |

कुंभकर्ण जगा (उठ बैठा) वह कैसा दिखाई देता है मानो स्वयं काल ही शरीर धारण करके बैठा हो । कुंभकर्ण ने पूछा - हे भाई! कहो तो, तुम्हारा मुख क्यों सूख रहा है?

लक्ष्मण मूर्च्छा और राम का विलाप का काव्य सौष्ठव:-

(क) भाव पक्ष

1. तुलसी जी ने निशाचर कुम्भकर्ण की तुलना मृत्यु से करके उसको महत्ता प्रदान की है।

2. रावण के दुख का सुंदर चित्रण किया गया है।

(ख) कला पक्ष

1. तुलसी ने साहित्यिक ठेठ अवधी का प्रवाहमयी रूप प्रदान किया है।

2. चौपाई छंद है।

3. ‘मानहुँ कालु देह’ में उत्प्रेक्षा अलंकार है ।

4. कुंभकरण के लिए काल की उत्प्रेक्षा प्रभावी है। यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है।

5.पुनि-पुनि’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

6.  सिर धुनना’ व ‘मुख सूखना’ मुहावरे का सुंदर प्रयोग है।

प्रश्न:-

(क) रावण ने कौनसा-सा वृत्तांत सुना? उसकी क्या प्रतिक्रिया थी?

उत्तर:- रावण ने लक्ष्मण की मूच्छीँ टूटने का समाचार सुना। यह सुनकर वह अत्यंत दुखी हो गया तथा सिर पीटने लगा।

(ख) रावण कहाँ गया तथा क्या किया?

उत्तर:- रावण कुंभकरण के पास गया तथा अनेक तरीकों से उसे नींद से जगाया।

(ग) कुंभकर्ण कैसा लग रहा था?

उत्तर:- कुंभकरण जागने के बाद ऐसा लग रहा था मानो यमराज शरीर धारण करके बैठा हो।

(घ) कुंभकर्ण ने रावण से क्या पूछा?

उत्तर:- कुंभकरण ने रावण से पूछा, ‘कहो भाई, तुम्हारे मुख क्यों सूख रहे हैं? अर्थात तुम्हें क्या कष्ट है? ”

 

8.       कथा कही सब तेहिं अभिमानी । जेहि प्रकार सीता हरि आनी॥

तात कपिन्ह सब निसिचर मारे। महा महा जोधा संघारे ॥

दुर्मुख सुररिपु मनुज अहारी। भट अतिकाय अंकपन भारी॥

अपर महोदर आदिक बीरा । परे समर महि सब रनधीरा

कठिन शब्दार्थ:-

कथा=कहानी, तेहिं= उससे, जेहि= जिस, अभिमानी=अभिमानपूर्वक, जेहि=जिस प्रकार, हरि= हरण करके, आनी= लाए, कपिन्ह= हनुमान आदि वानरों ने, निसिचर=राक्षस, महा महा– बड़े=बड़े, जोधा= योद्धा/वीर,  संधारे= संहार किया/ मर डाले, दुर्मुख= एक राक्षस का नाम/कटु भाषी, सुररिपु= देवताओं का शत्रु (इंद्रजीत), मनुज अहारी= नरभक्षी / नरांतक, भट= योद्धा, अतिकाय= एक राक्षस का नाम/ विशाल शरीर वाला, अंकपन=कभी भय से न काँपने वाला, अपर= दूसरा, महोदर= एक राक्षस का नाम/बड़े पेट वाला, आदिक= आदि, समर= युद्ध, महि= भूमि/ धरती, रनधीरा= रणधीर/युद्ध में धैर्य रखने वाले, (दुर्मुख,सुररिपु,मनुज अहारी,अतिकाय,अकंपन, महोदर आदि रावण की सेना के वीरों के नाम है|)

प्रसंग:-

प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप’ प्रसंग से उद्धृत है। यह प्रसंग रामचरितमानस के लंका कांड से लिया गया है। इसके रचयिता तुलसीदास हैं।

इस काव्यांश में तुलसीदास जी ने रावण-कुम्भकर्ण वार्तालाप का वर्णन करते हुए लिखा है कि रावण अपने भाई कुम्भकर्ण को बताता है कि हनुमान आदि वानरों ने युद्ध में अनेक बड़े राक्षसों को मार डाला है।

व्याख्या:-

            अभिमानी रावण ने जिस प्रकार से सीता का हरण किया था उसकी और उसके बाद तक की सारी कथा उसने कुंभकरण को सुनाई। रावण ने बताया कि हे तात, हनुमान आदि वानरों ने सब राक्षस मार डाले हैं। उसने महान-महान योद्धाओं का संहार कर दिया है। दुर्मुख, देवशत्रु, नरांतक, महायोद्धा, अतिकाय, अकंपन और महोदर आदि अनेक वीर युद्धभूमि में मरे पड़े हैं।

लक्ष्मण मूर्च्छा और राम का विलाप का काव्य सौष्ठव:-

(क) भाव पक्ष

1. हनुमान आदि वानरों द्वारा लंका के बड़े-बड़े महान योद्धाओं का वध करने की बात कही गई है।

2. रामायण के युद्ध में वीर गति प्राप्त कुछ महान् योद्धाओं के पराक्रम का वर्णन किया गया है।

(ख) कला पक्ष

1.  तुलसी ने तत्सम शब्दावली युक्त साहित्यिक ठेठ अवधी का प्रवाहमयी रूप प्रदान किया है।

2. चौपाई छंद हैं।

3. वीर, रौद्र व करूण रसों का समन्वय तुलसी के समन्वय की भावना को उजागर करती है।

4. मानहुँ कालु देह’ में उत्प्रेक्षा अलंकार है ।

5. ‘कथा कही’, ‘अतिकाय , अकंपन’ आदि शब्दों में अनेक बार अनुप्रास अलंकार का सुन्दर प्रयोग है।

6. ‘महा महा’ में पुनरुक्ति प्रकाश अलंकार है।

7. संवाद शैली है।

 प्रश्न

 (क) किसने, किसको, क्या कथा सुनाई थी?

उत्तर:- रावण ने कुंभकरण से सीता-हरण से लेकर अब तक के युद्ध और उसमें मारे गए अपनी सेना के वीरों के बारे में बताया ।

(ख) रावण की सेना के कौन-कौन से वीर मारे गए?

उत्तर:- रावण की सेना के दुर्मुख, अतिकाय, अकंपन, महोदर, नरांतक आदि वीर मारे गए।

 (ग) हनुमान के बारे में रावण क्या बताता हैं?

उत्तर:- हनुमान ने अनेक बड़े-बड़े वीरों को मारकर रावण की सेना को गहरी क्षति पहुँचाई थी। रावण कुंभकरण को हनुमान की वीरता, अपनी विवशता और पराजय की आशंका के बारे में बताता है।

9. ‘लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप’ का दोहा

सुनि दसकंधर बचन तब कुंभकरन बिलखान।

जगदंबा हरि आनि अब सठ चाहत कल्यान ॥

कठिन शब्दार्थ:-

दसकंधर=रावण,  बिलखान= व्याकुल हो उठा/ दुखी होकर रोने लगा,  जगदंबा= सीता/जगन्माता/जगत-जननी,  हरि= अपहरण करके ,  आनि=लाकर,  सठ=मूर्ख, चाहत=चाहते हो, कल्यान=कल्याण/हित/शुभ

प्रसंग:-

प्रस्तुत काव्यांश हमारी पाठ्यपुस्तक ‘आरोह, भाग-2’ में संकलित ‘लक्ष्मण-मूर्च्छा और राम का विलाप’ प्रसंग से उद्धृत है। यह प्रसंग रामचरितमानस के लंका कांड से लिया गया है। इसके रचयिता तुलसीदास हैं।

इस प्रसंग में कुंभकरण व रावण के वार्तालाप का वर्णन है।

व्याख्या:-

रावण की बातें सुनकर कुंभकरण व्याकुल हो उठा और बोला कि अरे मूर्ख, जगत-जननी सीता को चुराकर अब तू कल्याण चाहता है ? यह संभव नहीं है।        

लक्ष्मण मूर्च्छा और राम का विलाप का काव्य सौष्ठव:-

(क) भाव पक्ष

1. काल रूप के समान होने पर भी कुम्भकर्ण से सीता हरण के कार्य पर रावण को खेद प्रकट करता है और उसे रावण के कल्याण की कोई आशा नहीं है।

2. रावण की व्याकुलता तथा कुंभकरण की वाक्पटुता का पता चलता है।

3. भाव सौन्दर्य के लिए अभिधा शब्द शक्ति के द्वारा चुनिंदा शब्दों का प्रयोग किया गया है।

(ख) कला पक्ष

1. अवधी भाषा का साहित्यिक प्रवाहमयी प्रयोग काव्य सौष्ठव को बढ़ाता है।

2. संस्कृत प्रधान शब्दावली का भाव और प्रवाह के लिए मनोहारी प्रयोग हुआ है। क्रोध के कारण रौद्र व वीभत्स रस (घृणा से) का प्रयोग है।

3. दोहा छंद हैं।

प्रश्न:- (क) रावण की बातों पर कुंभकरण ने क्या प्रतिक्रिया जताई?

उत्तर:- रावण की बात सुनकर कुंभकरण बिलखने लगा। उसने कहा, ‘हे मूर्ख, जगत-जननी का हरण करके तू कल्याण की बात सोचता है? अब तेरा भला नहीं हो सकता।”

 

 

कोई टिप्पणी नहीं

Please do not enter any spam link in the comment box.