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रांगेय राघव का जीवन-परिचय | Rangey Raghav Biography in Hindi

 

रांगेय राघव  (ranghey raghav ka jeevan parichay )

रांगेय राघव
(ranghey raghav ka jeevan parichay )

(17 जनवरी 1923-12 सितंबर 1962)

रांगेय राघव हिंदी के उन बहुमुखी प्रतिभावान रचनाकारों में से हैं जो बहुत ही कम उम्र में इस संसार से विदा हो गये, लेकिन जिन्होंने अल्पायु में ही अपने आप को एक श्रेष्ठ उपन्यासकार, कहानीकार, निबंधकार, आलोचक, नाटककार, कवि, इतिहासवेत्ता तथा रिपोर्ताज लेखक के रूप में स्वंय को प्रतिस्थापित कर दिया, तथा साथ ही साथ अपने रचनात्मक कौशल से हिंदी की महान सृजनशीलता के दर्शन करा दिए।

            हिंदीतर भाषी होते हुए भी हिंदी साहित्य के विभिन्न धरातलों पर युगीन सत्य से उपजा महत्त्वपूर्ण साहित्य उपलब्ध कराया। ऐतिहासिक और सांस्कृतिक पृष्ठभूमि पर जीवनीपरक उपन्यासों का ढेर लगा दिया। कहानी के पारंपरिक ढाँचे में बदलाव लाते हुए नवीन कथा प्रयोगों द्वारा उसे मौलिक कलेवर में विस्तृत आयाम दिया। रिपोर्ताज लेखन, जीवनचरितात्मक उपन्यास और महायात्रा गाथा की परंपरा डाली। विशिष्ट कथाकार के रूप में उनकी सृजनात्मक संपन्नता प्रेमचंदोत्तर रचनाकारों के लिए बड़ी चुनौती बनी।

 

रांगेय राघव (Rangey Raghav) का संक्षिप्त परिचय :-

पूरा नाम            तिरूमल्लै नंबकम् वीरराघव आचार्य (टी.एन.बी.आचार्य)

साहित्यिक नाम  रांगेय राघव

जन्म                  17 जनवरी, 1923

जन्म स्थान         आगरा, उत्तरप्रदेश

मृत्यु                  12 सितंबर, 1962

मृत्यु का स्थान    मुंबई, महाराष्ट्र

पिता                 श्री रंगनाथ वीर राघवाचार्य

माता                 श्रीमती वनकम्मा

पत्नी                  सुलोचना

मातृभाषा          तमिल

भाषा                हिन्दी, अंग्रेज़ी, ब्रज और संस्कृत

विद्यालय           सेंट जॉन्स कॉलेज, आगरा विश्वविद्यालय

शिक्षा                स्नातकोत्तर, पी.एच.डी

पुरस्कार/उपाधि:- हिंदुस्तानी अकादमी पुरस्कार,

डालमिया पुरस्कार,

उत्तर प्रदेश शासन पुरस्कार,   

राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार।

 

अन्य जानकारी:- 

विदेशी साहित्य को हिन्दी भाषा के माध्यम से हिन्दी भाषी जनता तक पहुँचाने का महान् कार्य रांगेय राघव ने किया। अंग्रेज़ी के माध्यम से कुछ फ्राँसिसी और जर्मन साहित्यकारों का अध्ययन करने के पश्चात्‌ उनके बारे में हिन्दी जगत् को अवगत कराने का उत्तम कार्य भी उन्होंने किया।

 

रांगेय राघव की जीवनी :-

(Rangeya Raghav Biography in Hindi)

रांगेय राघव का जन्म उत्तर प्रदेश के आगरा में 17 जनवरी 1923 में हुआ था। राघव के पिता का नाम श्री रंगनाथ वीर राघवाचार्य और माता का नाम श्रीमती वनकम्मा था। इनका परिवार मूलरूप से तिरुपति, आंध्र प्रदेश का निवासी था। रांगेय राघव का मूल नाम तिरूमल्लै नंबाकम वीर राघव आचार्य (T.N.B Acharya) था, बाद में इन्हें रांगेय राघव नाम से जाना जाने लगा। इन्हे हिंदी साहित्य का शेक्सपियर कहा जाता है, जबकि मूल तमिल भाषी थे।

पिता श्री रंगाचार्य के पूर्वज लगभग तीन सौ वर्ष पहले जयपुर और फिर भरतपुर के बयाना कस्बे में आकर रहने लगे थे। रांगेय राघव का जन्म हिन्दी प्रदेश में हुआ। उन्हें तमिल और कन्नड़ भाषा का भी ज्ञान था। रांगेय की शिक्षा आगरा में हुई थी। 'सेंट जॉन्स कॉलेज' से 1944 में स्नातकोत्तर और 1949 में 'आगरा विश्वविद्यालय' से गुरु गोरखनाथ पर शोध करके उन्होंने पी.एच.डी. की थी। रांगेय राघव का हिन्दी, अंग्रेज़ी, ब्रज और संस्कृत पर असाधारण अधिकार था।

रांगेय राघव में बारे में कहा जाता है कि जितने समय में कोई पुस्तक पड़ेगा उतने समय में वह पुस्तक लिख सकते थे। हिन्दी साहित्य का सभंवत: ऐसा कोई अंग नहीं है, जहाँ हिन्दी साहित्य के साधक डॉ. रांगेय राघव ने अपनी साधना का प्रयोग न किया हो। ये गौर वर्ण, उन्नत ललाट, लम्बी नासिका और चेहरे पर गंभीरतामयी मुस्कान बिखेरे हुए हिन्दी साहित्य के अनन्य उपासक थे। वे रामानुजाचार्य परम्परा के तमिल देशीय आयंगर ब्राह्मण थे।

 

रांगेय राघव की प्रारम्भिक जीवन और शिक्षा (Early Life & Education) :-

कहा जाता है कि रांगेय राघव के पूर्वज लगभग 300 साल पहले आकर जयपुर और भरतपुर के गांवों में रहने लगे थे| रांगेय राघव की शिक्षा आगरा में ही हुई थी। उन्होंने 1944 में 'सेंट जॉन्स कॉलेज' से स्नातकोत्तर और 1949 में 'आगरा विश्वविद्यालय' से गुरु गोरखनाथ पर शोध करके पीएचडी की डिग्री हासिल की थी| महज 13 वर्ष की अल्पायु से उन्होंने लेखन कार्य प्रारंभ कर दिया था। इनके लेखन की शुरुआत कविता लिखने से हुई थी।

साहित्य के अलावा उनकी चित्रकला, संगीत और पुरातत्व में भी रुचि थी।

वह अंग्रेजी, हिंदी, ब्रज और संस्कृत के विद्वान थे. पर दक्षिण भारतीय भाषाओं, तमिल और तेलुगू का भी उन्हें अच्छा-खासा ज्ञान था|

 

रांगेय राघव नाम के पीछे की कहानी :-

रांगेय राघव नाम के पीछे भी एक कहानी है| उन्होंने अपने पिता रंगाचार्य के नाम से रांगेय स्वीकार किया और अपने स्वयं के नाम राघवाचार्य से राघव शब्द लेकर अपना नाम रांगेय राघव रखा| रांगेय राघव नाम के पीछे उनके व्यक्तित्व और साहित्य में दृष्टिगत होने वाली समन्वय की भावना परिलक्षित होती है। उनके साहित्य में जैसे सादगी परिलक्षित होती है वैसे ही उनका जीवन सीधा-सादा और सादगीपूर्ण था|

रांगेय राघव और जानपील सिगरेट:-

सिगरेट पीने का उन्हें बेहद शौक़ था। वह सिगरेट पीते तो केवल जानपील ही, दूसरी सिगरेट को वह हाथ तक नहीं लगाते थे। एक दर्जन सिगरेट की डिब्बी उनकी लिखने की मेज पर रखी रहती थीं और ऐश-ट्रे के नाम पर रखा गया चीनी का प्याला दिन में तीन-चार बार साफ़ करना पड़ता। उनका कमरा था कि सिगरेट की गंध और धुएँ से भरा रहता था। किसी भी आँगन्तुक ने आकर उनके कमरे का दरवाज़ा खोला तो सिगरेट का एक भभका उसे लगता, परन्तु हिन्दी साहित्य के इस साधक के लिये सिगरेट पीना एक आवश्यकता बन गई थी। बिना सिगरेट पिये वह कुछ भी कर सकने में असमर्थ थे। परन्तु शायद सिगरेट पीने की यह आदत ही उनकी मृत्यु का कारण बनी, जिसने 1962 में हिन्दी के इस अनुपम योद्धा को हमसे हमेशा के लिये छीन लिया।

 

रांगेय राघव की सृजन-यात्रा  :- (ranghey raghav ki srujan yatra )

          अपनी सृजन-यात्रा के बारे में रांगेय राघव ने स्वयं कोई ख़ास ब्योरा नहीं छोड़ा है। ख़ासकर अपने प्रारंभिक रचनाकाल के बारे में, लेकिन एक जगह उन्होंने लिखा है, ‘‘चित्रकला का अभ्यास कुछ छूट गया था। 1938 ई. की बात है, तब ही मैंने कविता लिखना शुरू किया। संध्या-भ्रमण का व्यसन था। एक दिन रंगीन आकाश को देखकर कुछ लिखा था। वह सब खो गया है और तब से संकोच से मन ने स्वीकार किया कि मैं कविता कर सकता हूँ। ‘प्रेरणा कैसे हुई’ पृष्ठ लिखना अत्यंत दुरुह है। इतना ही कह सकता हूँ कि चित्रों से ही कविता प्रारंभ हुई थी और एक प्रकार की बेचैनी उसके मूल में थी|”

उनके बारे में कहा जाता था कि वो दोनो हाथों से रात दिन लिखते थे और उनके लिखे ढेर को देखकर समकालीन ये भी कयास लगाते थे कि शायद वो तन्त्र सिद्ध है नहीं तो इतने कम समय में कोई भी इतना ज़्यादा और इतना बढिया कैसे लिख सकता है। उन्हें हिन्दी का पहला मसिजीवी क़लमकार भी कहा जाता है जिनकी जीविका का साधन सिर्फ़ लेखन था।

डॉ रांगेय राघव साहित्य की प्रायः सभी विधाओं में सिद्धहस्त थे। आपने साहित्य की हर विधा में अपना चमत्कार दिखाया। 13 वर्ष की आयु में लिखना शुरू किया। डॉ रांगेय राघव अपनी अद्भुत प्रतिभा, असाधारण ज्ञान और लेखन-क्षमता के लिए सर्वमान्य अद्वितीय लेखक माने जाते हैं।

आपने संस्कृत रचनाओं व विदेशी साहित्य का हिन्दी में अनुवाद किया। स्वतंत्र लेखन करते हुए आपका अधिकांश जीवन आगरा, वैर और जयपुर में व्यतीत हुआ।

1942 में अकालग्रस्त बंगाल की यात्रा के बाद उन्होंने रिपोर्ताज ‘तूफान के बीच‘ लिखा। जिसे भी खूब प्रसिद्धि मिली। यह रिपोर्ताज हिंदी में चर्चा का विषय बना।

रांगेय राघव की प्रथम रचना 1946 में ‘घरौंदा’ शीर्षक से प्रकाशित हुई। यह विश्वविद्यालय जीवन पर लिखा गया प्रथम उपन्यास था। घरौंदा उपन्यास से ही वे एक प्रगतिशील कथाकार के रूप में चर्चित हुए।   

मात्र 39 वर्ष की आयु में कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, रिपोर्ताज के अतिरिक्त आलोचना, संस्कृति और सभ्यता पर कुल मिलाकर 150 से अधिक पुस्तकें लिखीं। रांगेय राघव के कहानी-लेखन का मुख्य दौर भारतीय इतिहास की दृष्टि से बहुत हलचल-भरा विरल कालखंड है।  आपकी कहानी ‘गदल' इतनी लोकप्रिय हुई कि इसका अनुवाद अनेक विदेशी भाषाओं में भी हुआ।

रांगेय राघव की कहानियों की विशेषता:- यह है कि इस पूरे समय की शायद ही कोई घटना हो जिसकी गूँजें-अनुगूँजे उनमें न सुनी जा सकें। सच तो यह है कि रांगेय राघव ने हिंदी कहानी को भारतीय समाज के उन धूल-काँटों भरे रास्तों, आवारे-लफंडरों-परजीवियों की फक्कड़ ज़िंदगी, भारतीय गाँवों की कच्ची और कीचड़-भरी पगडंडियों की गश्त करवाई, जिनसे वह भले ही अब तक पूर्णत: अपरिचित न रही हो पर इस तरह हिली-मिली भी नहीं थी और इन 'दुनियाओं' में से जीवन से लबलबाते ऐसे-ऐसे कद्दावर चरित्र प्रकट किए जिन्हें हम विस्मृत नहीं कर सकेंगे। 'गदल' भी एक ऐसा ही चरित्र है।

           

रांगेय राघव  की रचनाओं में स्त्री को स्थान :-

रांगेय राघव के अधिकार ऐतिहासिक उपन्यास उन चरित्रों से जुड़ी महिलाओं के नाम पर लिखे गए है, जैसे ‘भारती का सपूत’, जो भारतेंदु हरिश्चंद्र की जीवनी पर आधारित है, ‘लखिमा की आंखे’, विद्यापति के जीवन पर, ‘रत्ना की बात’, तुलसी के जीवन पर और ‘देवकी का बेटा’ कृष्ण के जीवन पर आधारित है।

इनके अलावा रांगेय राघव ने पौराणिक और ऐतिहासिक पात्रों को एक स्त्री के नजरिए से देखने की कोशिश की, जबकि उस समय हिंदी साहित्य में आधुनिक स्त्री विमर्श का पर्दापण भी ठीक से नहीं हुआ था।

उनकी सुप्रसिद्ध हिंदी कहानी ‘गदल’ आधुनिक स्त्री विमर्श की कसौटी पर खरी उतरती है। यह कहानी बहुत लोकप्रिय हुई, जिसका अनेक विदेशो भाषाओं में अनुवाद भी हुआ।

रांगेय राघव के प्रसिद्ध उपन्यास ‘कब तक पुकारूँ’ पर एक टेलीविजन धारावाहिक भी बन चुका है| 1948 में उनका दूसरा उपन्यास ‘मुर्दों का टीला’ प्रकाशित हुआ, इस उपन्यास की कहानी सिंधु घाटी सभ्यता पर आधारित थी।

 

रांगेय राघव _हिंदी के शेक्सपियर:-

रांगेय राघव ने जर्मन और फ्रांसीसी के कई साहित्यकारों की रचनाओं का हिंदी में अनुवाद किया। उन्होंने शेक्सपियर के दस नाटकों का भी हिंदी में अनुवाद किया, वे अनुवाद मूल रचना सरीखे थे, इसलिए रांगेय राघव को 'हिंदी के शेक्सपीयर' की संज्ञा दे दी गई|

विदेशी साहित्य को हिन्दी भाषा के माध्यम से हिन्दी भाषी जनता तक पहुँचाने का महान् कार्य रांगेय राघव ने किया। अंग्रेज़ी के माध्यम से कुछ फ्राँसिसी और जर्मन साहित्यकारों का अध्ययन करने के पश्चात्‌ उनके बारे में हिन्दी जगत् को अवगत कराने का कार्य उन्होंने किया।

शायद बहुत कम लोग यह जानते होंगे कि हिन्दी साहित्य का यह अनूठा व्यक्तित्व वस्तुत: तमिल भाषी था, जिसने हिन्दी साहित्य और भाषा की सेवा करके अपने अलौकिक प्रतिभा से हिन्दी के 'शेक्सपीयर' की संज्ञा ग्रहण की।

शेक्सपीयर के नाटकों का अनुवाद

विदेशी साहित्य को हिन्दी भाषा के माध्यम से हिन्दी भाषी जनता तक पहुँचाने का महान् कार्य डॉ. रांगेय राघव ने किया। अंग्रेज़ी भाषा के माध्यम से कुछ फ्राँसिसी और जर्मन साहित्यकारों का अध्ययन करने के पश्चात्‌ उनके बारे में हिन्दी जगत् को अवगत कराने का कार्य उन्होंने किया। विश्व प्रसिद्ध अंग्रेज़ी नाटककार शेक्सपीयर को तो उन्होंने पूरी तरह हिन्दी में उतार ही दिया। शेक्सपीयर की अनेक रचनाओं को हिन्दी में अनुवादित करके हिन्दी जगत् को विश्व की महान् कृतियों से धनी बनाया। शेक्सपीयर को दुखांत नाटकों में हेमलेट, ओथेलो और मैकबेथ को तो जिस खूबी से डॉ.-रांगेय राघव ने हिन्दी के पाँडाल में उतारा वह उनके जीवन की विशेष उपलब्धियों में गिनी जाती है। उनके अनुवाद की यह विशेषता थीं कि वह अनुवाद न लगकर मूल रचना ही प्रतीत होती है। शेक्सपीयर की लब्ध प्रतिष्ठित कृतियों को हिन्दी में प्रस्तुत कर उनकी भावनाओं के अनुरूप शेक्सपीयर को हिन्दी साहित्य में प्रकट करने का श्रेय डॉ. रांगेय राघव को ही जाता है और इसी कारण वह हिन्दी के शेक्सपीयर कहे जाते हैं।

 

रांगेय राघव का लेखक व्यक्तित्व:- (ranghey raghav ka vyaktitva )

रांगेय राघव सामान्य जन के ऐसे रचनाकार थे जो समूचे जीवन न किसी वाद से बंधे, न विधा से| उन्होंने अपने ऊपर मढ़े जा रहे मार्क्सवाद, प्रगतिवाद और यथार्थवाद का विरोध किया. उनका कहना था कि उन्होंने न तो प्रयोगवाद और प्रगतिवाद का आश्रय लिया और न ही प्रगतिवाद के चोले में अपने को यांत्रिक बनाया. वह मूलतः मानवीय सरोकारों के लेखक हैं|

रांगेय राघव के रचनाकर्म को देखें तो उन्होंने अपने अध्ययन से, हमारे दौर के इतिहास से, मानवीय जीवन की, मनुष्य के दुःख, दर्द, पीड़ा और उस चेतना की, जिसके भरोसे वह संघर्ष करता है, अंधकार से जूझता है, उसे ही सत्य माना, और उसी को आधार बनाकर लिखा, उसे प्रेरणा दी|

 

 

रांगेय राघव साहित्य की साधना:- (ranghey raghav ki sahitya sadhana )

भरतपुर ज़िले में एक तहसील है वैर। शहर के कोलाहल से दूर प्राकृतिक वातावरण, ग्रामीण सादगी और संस्कृति तथा वहाँ के वातावरण की अद्‌भुत शक्ति ने रांगेय राघव को साहित्य की साधना में इस सीमा तक प्रयुक्त किया कि वह उस छोटी सी नगरी वैर में ही बस गये। वैर भरतपुर के जाट राजाओं के एक छोटे से क़िले के कारण तो प्रसिद्ध है ही, परन्तु वहाँ तमिलनाडु के स्वामी रंगाचार्य का दक्षिण शैली का सीतारामजी का मंदिर भी बहुत प्रसिद्ध है। इस मंदिर के महंत डॉ. रांगेय राघव के बड़े भाई रहे हैं। मंदिर की शाला में बिल्कुल तपस्वी जैसा जीवन व्यतीत करने वाले तमिल भाषी व्यक्ति ने हिन्दी साहित्य की देवी की पुजारी की तरह आराधना-अर्चना की। नारियल की जटाओं के गद्दे पर लेटे-लेटे और अपने पैर के अँगूठे में छत पर टंगे पंखे की डोरी को बाँधकर हिलाते हुए वह घंटों तक साहित्य की विभिन्न विधाओं और अयामों के बारे में सोचते रहते थे। जब डॉ. रांगेय राघव सोचते तो सोचते ही रहते थे - कई दिनों तक न वह कुछ लिखते और न पढ़ते। और जब उन्हें पढ़ने की धुन सवार होती तो वह लगातार कई दिनों तक पढ़ते ही रहते। सोचने और पढ़ने के बाद जब कभी उनका मूड बनता तो वह लिखने बैठ जाते और निरन्तर लिखते ही रहते। लिखने की उनकी कला अद्‌भुत थी। एक बार तो लिखने बैठे तो वह उस रचना को समाप्त करके ही छोड़ते थे। इसी कारण जितनी कृतियाँ उन्होंने लिखीं वह सब पूरी की पूरी लिखी गईं। उनका अंतिम उपन्यास 'आखिरी आवाज़' कुछ अर्थों में इस कारण अधूरा रह गया कि वह कई महीनों तक मौत से जूझते रहे। काश ऐसा होता कि वह मौत से जूझने के बाद जीवित रहे होते तो शायद एक और उपन्यास मौत के संघर्ष के बारे में हिन्दी साहित्य को मिल गया होता।

 

रांगेय राघव _अनेक भाषाओं के ज्ञाता:-

रांगेय राघव तमिल, तेलगु के अलावा हिंदी, अंग्रेज़ी , ब्रज और संस्कृत भाषा के विद्वान है। उन्हें साहित्य की सभी भाषाओं में महारत हासिल थी। उन्होंने मात्र 38 वर्ष की अल्पायु में उपन्यास, कहानी, कविता, आलोचना, नाटक, यात्रा वृत्तांत, रिपोतार्ज के अतिरिक्त सभ्यता, संस्कृति, समाजशास्त्र, मानवशास्त्र, अनुवाद, चित्रकारी, शोध और व्याख्या के क्षेत्र में 150 से भी अधिक पुस्तक लिखी।

अपनी अद्भुत प्रतिभा, असाधारण ज्ञान और लेखन क्षमता के कारण वे अद्वितीय लेखक माने जाते है।

 

रांगेय राघव की रचनाएँ :-  (ranghey raghav ki rachnayen )

रांगेय राघव हिन्दी के प्रगतिशील विचारों के लेखक थे, किन्तु मार्क्स के दर्शन को उन्होंने संशोधित रूप में ही स्वीकार किया। उन्होंने अल्प समय में ही कितने साहित्य का सृजन किया, इसका अनुमान इस विवरण से लगाया जा सकता है। उनके प्रकाशित ग्रन्थों में 42 उपन्यास, 11 कहानी, 12 आलोचनात्मक ग्रन्थ, 8 काव्य, 4 इतिहास, 6 समाजशास्त्र विषयक, 5 नाटक और लगभग 50 अनूदित पुस्तकें हैं। ये सब रचनाएँ उनके जीवन काल में प्रकाशित हो चुकी थीं। 39 वर्ष की कच्ची उम्र में इनका देहान्त हुआ, लगभग 20 पुस्तकें प्रकाशन की प्रतीक्षा में थीं। यद्यपि उन्होंने कुछ अंग्रेज़ी ग्रन्थों के भी अनुवाद किए, किन्तु उनके अधिकांश साहित्य का परिवेश भारतीय संस्कृति और ऐतिहासिक जीवन ही रहा है।

 

रांगेय राघव की लेखन विधाएँ:

उपन्यास, कहानी संग्रह, यात्रा वृत्तान्त, विदेशी साहित्य का भारतीय भाषाओं में अनुवाद, नाटक, कविता, रिपोतार्ज, आलोचना और सभ्यता और संस्कृति पर शोध व व्याख्या।

 

रांगेय राघव  के कविता संग्रह (काव्य संग्रह):-   (ranghey raghav ke kavya sangrah )

           अजेय

           खंडहर

           पिघलते पत्थर

                      श्यामला

           मेधावी

           राह के दीपक

           पांचाली

           रूपछाया

 

रांगेय राघव के उपन्यास:-  (ranghey raghav ke upanyas)

              घरौंदा

              विषाद मठ

              मुरदों का टीला

              सीधा साधा रास्ता

              हुजूर

              चीवर

              प्रतिदान

              अँधेरे के जुगनू

              काका

              उबाल

              पराया

              देवकी का बेटा

              यशोधरा जीत गई

              लोई का ताना

              रत्ना की बात

              भारती का सपूत

              आँधी की नावें

              अँधेरे की भूख

              बोलते खंडहर

              कब तक पुकारूँ

              पक्षी और आकाश

              बौने और घायल फूल

              लखिमा की आँखें

              राई और पर्वत

              बंदूक और बीन

              राह न रुकी 

              जब आवेगी काली घटा

              धूनी का धुआँ

              छोटी सी बात

              पथ का पाप

              मेरी भव बाधा हरो

              धरती मेरा घर

              आग की प्यास

              कल्पना

              प्रोफेसर

              दायरे

              पतझर

              आखिरी आवाज़

              बारी बरणा खोल दो

              बन्दूक और बीन

 

रांगेय राघव के जीवनी प्रधान उपन्यास:-  (ranghey raghav ke jivani Pradhan upanyas)

डॉ. रांगेय राघव जी ने 1950 ई. के पश्चात् कई जीवनी प्रधान उपन्यास लिखे हैं, इनका पहला उपन्यास सन् 1951-1953 ई. के बीच प्रकाशित हुआ।

           भारती का सपूत जो भारतेन्दु हरिश्चन्द्र की जीवनी पर आधारित है।

           लखिमा की आँखेंं जो विद्यापति के जीवन पर आधारित है।

           मेरी भव बाधा हरो जो बिहारी के जीवन पर आधारित है।

           रत्ना की बात जो तुलसी के जीवन पर आधारित है।

           लोई का ताना जो कबीर- जीवन पर आधारित है।

           धूनी का धुंआं जो गोरखनाथ के जीवन पर कृति है।

           यशोधरा जीत गई जो गौतम बुद्ध पर लिखा गया है।

           देवकी का बेटा' जो कृष्ण के जीवन पर आधारित है।

 

रांगेय राघव के कहानी संग्रह:-  (ranghey raghav ke kahani sangrah)

           साम्राज्य का वैभव

           देवदासी

           समुद्र के फेन

           अधूरी मूरत

           जीवन के दाने

           अंगारे न बुझे

           ऐयाश मुरदे

           इन्सान पैदा हुआ

           पाँच गधे

           एक छोड़ एक    

                      चीवर

 

संकलित कहानियाँ  :- (पंच परमेश्वर, अवसाद का छल, गूंगे, प्रवासी, घिसटता कम्बल, पेड़, नारी का विक्षोभ, काई, समुद्र के फेन, देवदासी, कठपुतले, तबेले का धुंधलका, जाति और पेशा, नई जिंदगी के लिए, ऊंट की करवट, बांबी और मंतर, गदल, कुत्ते की दुम और शैतान : नए टेक्नीक्स, जानवर-देवता, भय, अधूरी मूरत)

 

अंतर्मिलन की कहानियाँ:- (दधीचि और पिप्पलाद, दुर्वासा, परशुराम, तनु, सारस्वत, देवल और जैगीषव्य, उपमन्यु, आरुणि (उद्दालक), उत्तंक, वेदव्यास, नचिकेता, मतंग, (एकत, द्वित और त्रित), ऋष्यश्रृंग, अगस्त्य, शुक्र, विश्वामित्र, शुकदेव, वक-दालभ्य, श्वेतकेतु, यवक्रीत, अष्टावक्र, और्व, कठ, दत्तात्रेय, गौतम-गौतमी, मार्कण्डेय, मुनि और शूद्र, धर्मारण्य, सुदर्शन, संन्यासी ब्राह्मण, शम्पाक, जैन तीर्थंकर, पुरुष तथा विश्व का निर्माण, मृत्यु की उत्पत्ति, गरुड़, अग्नि, तार्क्षी-पुत्र, लक्ष्मी, इंद्र, वृत्तासुर, त्रिपुरासुर, राजा की उत्पत्ति, चंद्रमा, पार्वती, शुंभ-निशुंभ, मधु-कैटभ, मार्तंड (सूर्य), दक्ष प्रजापति, स्वरोविष, शनैश्चर, सुंद और उपसुंद, नारद और पर्वत, कायव्य, सोम, केसरी, दशाश्वमेधिक तीर्थ, सुधा तीर्थ, अहल्या तीर्थ, जाबालि-गोवर्धन तीर्थ, गरुड़ तीर्थ, श्वेत तीर्थ, शुक्र तीर्थ, इंद्र तीर्थ, पौलस्त्य तीर्थ, अग्नि तीर्थ, ऋणमोचन तीर्थ, पुरुरवस् तीर्थ, वृद्धा-संगम तीर्थ, इलातीर्थ, नागतीर्थ, मातृतीर्थ, शेषतीर्थ), दस प्रतिनिधि कहानियाँ, गदल तथा अन्य कहानियाँ, प्राचीन यूनानी कहानियाँ, प्राचीन ब्राह्मण कहानियाँ, प्राचीन ट्यूटन कहानियाँ, प्राचीन प्रेम और नीति की कहानियाँ, संसार की प्राचीन कहानियाँ।)

 

रांगेय राघव के नाटक:-  (ranghey raghav ke natak )

           स्वर्णभूमि की यात्रा

           रामानुज

           विरूढ़क

 

रांगेय राघव के रिपोर्ताज:-  (ranghey raghav ke reportaj)

           तूफ़ानों के बीच  

 

रांगेय राघव की आलोचना कृतियाँ :- (ranghey raghav ki alochanatmak rachanaen )

           भारतीय पुनर्जागरण की भूमिका

           भारतीय संत परंपरा और समाज

           संगम और संघर्ष

           प्राचीन भारतीय परंपरा और इतिहास

           प्रगतिशील साहित्य के मानदंड

           समीक्षा और आदर्श

           काव्य यथार्थ और प्रगति

           काव्य कला और शास्त्र

           महाकाव्य विवेचन

           तुलसी का कला शिल्प

           आधुनिक हिंदी कविता में प्रेम और श्रृंगार

           आधुनिक हिंदी कविता में विषय और शैली

           गोरखनाथ और उनका युग

 

रांगेय राघव के यात्रा वृत्तान्त:- (ranghey raghav ke yatra vrutant )

महायात्रा गाथा (अँधेरा रास्ता के दो खंड), महायात्रा गाथा, (रैन और चंदा के दो खंड)।

 

रांगेय राघव द्वारा भारतीय भाषाओं में अनूदित कृतियाँ:-

जैसा तुम चाहो, हैमलेट, वेनिस का सौदागर, ऑथेलो, निष्फल प्रेम, परिवर्तन, तिल का ताड़, तूफान, मैकबेथ, जूलियस सीजर, बारहवीं रात।

 

रांगेय राघव को प्राप्त पुरस्कार और सम्मान (Award & Honor)

रांगेय राघव प्रेमचंद के बाद हिन्दी साहित्य के युग प्रवर्तक लेखक माने गए. उन्हें अपने रचनाकर्म के लिए कई सम्मान मिले :-

हिन्दुस्तान अकादमी पुरस्कार (1951),

डालमिया पुरस्कार (1954),

उत्तर प्रदेश सरकार पुरस्कार (1957 व 1959),

राजस्थान साहित्य अकादमी पुरस्कार (1961) तथा

मरणोपरांत (1966) महात्मा गांधी पुरस्कार से सम्मानित।

 

रांगेय राघव के विषय में अन्य लेखकों का दृष्टिकोण

           प्रसिद्ध लेखक राजेंद्र यादव ने कहा है - ‘‘उनकी लेखकीय प्रतिभा का ही कमाल था कि सुबह यदि वे आद्यैतिहासिक विषय पर लिख रहे होते थे तो शाम को आप उन्हें उसी प्रवाह से आधुनिक इतिहास पर टिप्पणी लिखते देख सकते थे ।”

           दिल्ली विश्वविद्यालय में प्राध्यापक विभास चन्द्र वर्मा ने कहा कि आगरा के तीन ‘र‘ का हिंदी साहित्य में महत्वपूर्ण योगदान है और ये हैं रांगेय राघव, रामविलास शर्मा और राजेंद्र यादव। वर्मा ने कहा कि रांगेय राघव हिंदी के बेहद लिक्खाड़ लेखकों में शुमार रहे हैं। उन्होंने क़रीब क़रीब हर विधा पर अपनी कलम चलाई और वह भी बेहद तीक्ष्ण दृष्टि के साथ। उनकी रचनाओं में स्त्री पात्र अत्यंत मजबूत होती थीं और लगभग पूरा कथानक उनके इर्द-गिर्द घूमता था। सिंधु घाटी सभ्यता के एक प्रमुख केंद्र मोअन-जो-दड़ो पर आधारित उनका काल्पनिक उपन्यास ‘मुर्दों का टीला‘ से लेकर कहानी तक में स्त्री पात्र कथा संसार की धुरी होती थी। साथ ही स्त्री के चिंतन विश्व को दर्शाती उनकी कृतियां ‘रत्ना की बात’, ‘लोई का ताना और लखिमा की आँखें’ बेमिसाल हैं जो क्रमशः तुलसी की पत्नी, कबीर की प्रेरणा और विद्यापति की प्रेमिका की दृष्टि से पेश विश्व-दर्शन है।

 

रांगेय राघव की मृत्यु (Death):-

1962  में उन्हें कैंसर रोग से पीड़ित बताया गया था। रांगेय राघव का लंबी बीमारी के कारण मात्र 39 वर्ष की अल्प आयु में 12 सितंबर, 1962 को मुंबई में निधन हो गया। विरले ही ऐसे सपूत हुए हैं जिन्होंने विधाता की ओर से कम उम्र मिलने के बावजूद इस विश्व को इतना कुछ अवदान दे दिया कि आज भी अच्छे-अच्छे लेखक दांतों तले अंगुलियां दबाने को विवश हो जाते हैं।

इस अद्भुत रचनाकार को मृत्यु ने इतनी जल्दी न उठा लिया होता तो वे और भी नये मापदण्ड स्थापित करते।

 

(धन्यवाद :- कृपया अपने सुझाव कमेन्ट करना न भूलें|)


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