आलेख लेखन कैसे करें aalekh lekhan kaise karen
आलेख लेखन
परिचय:-
प्रयोजनपरक हिन्दी
की सर्जनात्मक विधाओं में जो समाचारेतर सृजन किया जाता है, उसमें फीचर, रिपोर्ताज, साक्षात्कार, स्तम्भ, सम्पादक के नाम पत्र, यात्रावृत्त के साथ ही लेख या आलेख
की गणना की जाती है। यह ध्यान देने की बात है कि निबन्ध या ललित निबन्ध को विशुद्ध
साहित्यिक सृजन माना जाता है, जबकि लेख (आलेख), फीचर, साक्षात्कार आदि को साहित्येतर
पत्रकारीय-लेखन माना जाता है।
आलेख गद्य लेखन की एक विधा है
जिसमें किसी विषय पर विस्तृत जानकारी दी जाती है। आलेख में किसी भी विषय को गहराई और
विस्तार से समझाया जा सकता है। आलेख में तथ्यों, विचारों और भावनाओं
का समावेश होता है। यह एक ऐसा माध्यम है जिसके द्वारा लेखक अपने विचारों और ज्ञान
को पाठकों तक पहुंचा सकता है। आलेख का उद्देश्य किसी विषय को पाठकों के समक्ष रोचक
और उद्देश्यपूर्ण तरीके से प्रस्तुत करना होता है।
आलेख का स्वरूप एवं अभिप्राय- आलेख के लिए 'लेख' शब्द भी प्रचलित है जो कि अंग्रेजी
के 'आर्टिकल' का पर्याय है। लेख या आलेख को
निबन्ध नहीं समझना चाहिए,
क्योंकि निबन्ध
मोण्टेन का 'ऐस्से' है तथा आलेख 'आर्टिकल' का पर्याय है। मुद्रित माध्यम और
विशेषकर पत्रकारिता में निबन्ध की सत्ता नहीं है, उसमें आलेख का विशेष महत्त्व है।
समाचार-पत्र-पत्रिकाओं के
सम्पादकीय पृष्ठ पर या 'आप-एड' पर विचारपरक लेखन के रूप में लेख
या आलेख का प्रकाशन होता है। आलेख में लेखक सामान्य ढंग से अपने विचार सहज
भावाभिव्यक्ति के साथ प्रकट करता है, उसमें निर्वैयक्तिक के साथ तथ्यों, आँकड़ों, सूचनाओं और घटनाओं से सम्बन्धित
समाचारों आदि का समावेश सामयिक दृष्टि के साथ किया जाता है। इसलिए आलेख में
पाण्डित्य-प्रदर्शन एवं विषय-विश्लेषण नहीं रहता है संक्षेप में, आलेख का अभिप्राय प्रामाणिक
आँकड़ों के साथ पूरी गम्भीरता से विषय को सामाजिक दृष्टि से विचारपरक अभिव्यक्त
करना अथवा उसकी रूपरेखा प्रस्तुत करना है।
“लेख” से पहले “आ” उपसर्ग जोड़ने से आलेख शब्द बनता है। आलेख निबंध लेखन का
ही एक लघु रूप है।
समाचार पत्रों में कुछ लेख प्रकाशित होते है जो किसी समाचार या घटनाक्रम पर आधारित
होते है। ये
सम्पादकीय से भिन्न होते है, इनको आलेख कहते है। आलेख साहित्य,
खेलकूद, फिल्मजगत, व्यापार, विज्ञान, समाज तथा राजनीति इत्यादि विषयो से संबंधित होते है। लेख में सामान्यतः
किसी एक विषय से संबंधित विचार होते हैं। इसमें कल्पना के लिए कोई स्थान नहीं होता। इनकी शैली
विश्लेषणात्मक होती है। इनमे
तथ्यों,
समाचारो और सूचनाओं पर ज्यादा जोर दिया जाता है। आलेख लेखन को वैचारिक गद्य रचना भी कहा जाता है।
(क) आलेख की परिभाषा aalekh ki paribhasha
आलेख एक ऐसा
साहित्यिक रचना है जो किसी एक विषय पर केंद्रित होती है और उस विषय के बारे में
विस्तृत जानकारी प्रदान करती है। आलेख को हिंदी में ‘निबंध’ भी कहा जाता है।
(ख) आलेख की प्रमुख
विशेषताएँ (अच्छे आलेख लेखन
के क्या गुण होने चाहिए?) :-
acche aalekh ke gun
आलेख लेखन ऐसी कला जिसको अभ्यास करके ही सीखा जा सकता है या
उसे आदत में लाया जा सकता है।
एक आदर्श और अच्छे आलेख को पढ़कर पाठक के अन्दर उस मुद्दे को लेकर उस भावना का आना
अनिवार्य है। आलेख लेखन में भूमिका,
विषय प्रतिपादन और निष्कर्ष अहम होता है। नीचे कुछ
महत्वपूर्ण बिंदु दिए गए हैं:-
•
आलेख की भाषा सरल, सहज और स्पष्ट होनी चाहिए।
•
आलेख किसी एक विषय पर केंद्रित
होता है।
•
एक अच्छा आलेख नवीनता और ताजगी से संपन्न होना चाहिए।
•
आलेख हमेशा किसी ज्वलंत समस्या, तत्कालीन घटनाक्रम, महत्वपूर्ण व्यक्तियों तथा प्रसिद्द
मुद्दों या विषयों पर लिखा जाता है।
•
आलेख लिखने से पहले उसका गहन अध्ययन करना जरुरी होता है।
•
आलेख विचार विवेचन और विश्लेषण वाले होने चाहिए।
•
आलेख कथात्मक न हो कर विचारात्मक होते है। लेखक उसमे किसी विषय को
विचार-विश्लेषणात्मक शैली में प्रस्तुत करता है।
•
इसमें विषय के बारे में गहराई से जानकारी
दी जाती है।
•
इसकी शैली वर्णनात्मक, तर्कसंगत और रोचक होती है।
• इसमें तथ्यों के
साथ-साथ व्यक्तिगत विचार भी शामिल होते हैं।
•
आलेख अनुमान पर आधारित नहीं बल्कि तथ्यों पर आलेख का अस्तित्व होता है।
•
आलेख में प्रस्तुत सामग्री प्रमाणिक, स्पष्ट तथा असंदिग्ध होती है|
•
आलेख में गुमराह करने वाली कोई बात नहीं होनी चाहिए।
•
आलेख का आरम्भ तथा समापन रोचक तथा जिज्ञासापूर्ण होता है।
•
आलेख को पढ़कर पाठक की जिज्ञासा उत्पन्न हो जाए ऐसा आलेख होना चाहिए।
•
आखिरी में निष्कर्ष अनिवार्य होता है।
•
भावुकता के आधार पर भी आलेख संभव हो सकता है।
•
विषय वस्तु के आकार पर आलेख निर्भर हो सकता है।
आलेख के तत्त्व -
aalekh ke pramukh tatva
आलेख समाचारेतर साहित्य और उससे भिन्न पत्रकारीय लेखन की
एक विशिष्ट विधा है। इसके विविध तत्त्व माने जाते हैं,
वे इस प्रकार हैं - प्रामाणिकता,
गम्भीरता, बौद्धिकता, बहुआयामी, व्यापकता एवं सामाजिकता। इन तत्त्वों के आधार पर ही आलेख का
फीचर से पर्याप्त अन्तर दिखाई देता है।
(ग) आलेख के प्रकार aalekh ke prakar
आलेख को कई प्रकार से वर्गीकृत
किया जा सकता है,
जैसे:
1. विषय के आधार पर
वैज्ञानिक आलेख –
विज्ञान से संबंधित
दार्शनिक आलेख –
दर्शन शास्त्र से संबंधित
सामाजिक आलेख – समाज
से संबंधित
ऐतिहासिक आलेख –
इतिहास से संबंधित
साहित्यिक आलेख –
साहित्य से संबंधित
2. उद्देश्य के आधार
पर
विवरणात्मक आलेख –
किसी विषय का वर्णन करते हैं
विश्लेषणात्मक आलेख
– किसी विषय का विश्लेषण करते हैं
तुलनात्मक आलेख – दो
विषयों की तुलना करते हैं
समीक्षात्मक आलेख –
किसी विषय पर समीक्षा प्रस्तुत करते हैं
3. शैली के आधार पर
विनोदी आलेख – हास्य
और व्यंग्य से भरपूर
गंभीर आलेख – गंभीर
शैली में लिखे जाते हैं
व्याख्यात्मक आलेख –
किसी बात की व्याख्या करते हैं
वक्तव्यात्मक आलेख –
लेखक के विचार प्रस्तुत करते हैं
(घ) आलेख लेखन कैसे
करें? आलेख लेखन
प्रक्रिया:-
आलेख लेखन कैसे करें aalekh lekhan kaise karen
आलेख लेखन एक कला है
और इसमें निपुणता प्राप्त करने के लिए निरंतर अभ्यास और प्रयास की आवश्यकता होती
है।
एक अच्छा आलेख लिखने
के लिए निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए:
1. विषय चयन :-
सबसे पहले, एक अच्छा,रोचक और जानकारीपूर्ण विषय विषय
चुनना चाहिए जिसे आप अच्छी तरह से जानते हैं , जिसपर आपको लिखने में रुचि हो और
जिस पर आप लिखना चाहते हैं।
2. लेखन विषय पर शोध
करें:-
विषय चयन के पश्चात उस
विषय के बारे में अच्छी तरह से जानने के लिए, आपको पर्याप्त शोध करना होगा। इसके
लिए आप पुस्तकों, लेखों, समाचार पत्रों, पत्रिकाओं, इंटरनेट वेबसाइटों आदि स्रोतों का
उपयोग कर सकते हैं।
3. योजना/ मुख्य
बिंदुओं की सूची बनाएँ:-
एक बार जब आप विषय
के बारे में पर्याप्त जानकारी प्राप्त कर लेते हैं, तो आपको एक योजना बनानी होगी।
योजना में आपको आलेख के मुख्य बिंदुओं को शामिल करना होगा। इसके लिए जुटाई गई
जानकारी को वर्गीकृत करते हुए मुख्य बिंदुओं की एक सूची तैयार करें।
4. रूपरेखा बनाएँ:-
आलेख की रूपरेखा
तैयार करें। इसमें परिचय,
मुख्य शीर्षक, उपशीर्षक शामिल हों।
5. आलेख लेखन:- आलेख की रुपरेखा को
ध्यान में रखते हुए निम्न चरणों की सहायता से आलेख लेखन करें|
i. पहला मसौदा लिखें:- अब रूपरेखा के
आधार पर आलेख का पहला मसौदा तैयार करें। सभी मुख्य बिंदुओं को शामिल करें। आलेख
लेखन के समय आलेख लेखन के लिए आवश्यक गुण और विशेषताओं को भी ध्यान में रखें|
ii. संपादन करें:- पहला मसौदा तैयार
होने के बाद इसका संपादन करें। संपादन में आपको त्रुटियों को सुधारना, शब्दों और वाक्यों को बदलना और
आलेख को और अधिक प्रभावी बनाना शामिल है। जरूरत पड़ने पर जानकारी जोड़ें या हटाएं।
iii. अंतिम मसौदा:- संपादन के बाद अंतिम
मसौदा तैयार करें और शैलीगत रूप से इसे सुधारें।
iv. प्रकाशन: आलेख को प्रकाशित
करने के लिए, आप इसे एक समाचार पत्र, पत्रिका, वेबसाइट आदि में भेज सकते हैं। आप
इसे अपनी वेबसाइट या ब्लॉग पर भी प्रकाशित कर सकते हैं।
(च) आलेख लेखन के
लाभ:-
आलेख लेखन के कई लाभ
हैं, जिनमें से कुछ प्रमुख लाभ हैं:
आलेख लेखन एक
रचनात्मक और आत्म-अभिव्यक्तिपूर्ण गतिविधि है।
आलेख लेखन और फीचर लेखन में अंतर :-
aalekh aur feature me antar
आलेख लेखन और फीचर में मूलभूत अंतर आप
उसे पढ़कर भी बता सकते हैं। दोनों अपनी-अपनी तरह से पाठक के अन्दर एक लालसा
उत्पन्न कर देते हैं।
आलेख के उक्त तत्त्वों के आधार पर
फीचर से इसका अन्तर इस प्रकार है -
प्रामाणिकता- आलेख में प्रामाणिक आँकड़ों और
तथ्यों का समावेश किया जाता है, जबकि फीचर में कल्पनाओं एवं भावनाओं
से विषय-विवेचन रहता है।
गम्भीरता- आलेख में लेखक को उपलब्ध तथा प्राप्त
आधार-सामग्री पर गम्भीरतापूर्वक ध्यान देना पड़ता है। इसमें गम्भीरता और चिन्तन-मनन
बहुत आवश्यक होता है। इसके विपरीत फीचर में मनोरंजकता एवं हास-परिहास का पुट दिया
जाता है।
बौद्धिकता- आलेख का सम्बन्ध मस्तिष्क से होता है, जबकि फीचर का सम्बन्ध हृदय से होता है।
बहुआयामी- आलेख बहुआयामी, गम्भीर एवं उच्च लेखन होता है, जबकि फीचर एक गद्य गीत की तरह क्षणिक अलंकरण होता है। इसी
कारण आलेख को बहमंजिला भवन तथा फीचर को साफ-सुथरी और मनोरम कटी के समान माना जाता
है।
व्यापकता- फीचर के अनेक प्रकार विषयानुसार हो
सकते हैं। वह मनोरंजक और मनोविनोदी भी हो सकता है। परन्तु आलेख व्यापक होते हुए भी
हास्य-विनोद से रहित होता है।
सामाजिकता- आलेख और फीचर की प्रस्तति समाचारों
से भिन्न होती है। ये दोनों समाजजीवी भी हैं और परस्पर विरोधी भी, फिर भी आलेख में निर्वैयक्तिकता की प्रधानता रहती है, उसमें सामाजिकता का दृष्टिकोण प्रमुख रूप से रहता है।
आकार:-
फीचर 250 शब्दों से अधिक का नहीं होना चाहिए जबकि आलेख बड़ा भी हो सकता है।
विषयवस्तु:-
फीचर विषय से संबंधित व्यक्तिगत
अनुभूतियों पर आधारित विशिष्ट आलेख होता है जिसमें कल्पनाशीलता और सृजनात्मक कौशल
होनी चाहिए जबकि आलेख में विषय पर तथ्यात्मक,
विश्लेषणात्मक अथवा विचारात्मक
जानकारी होती है कल्पना का स्थान नहीं होता है।
• आलेख गंभीर व व्यंग्यपूर्ण होता है जबकि फीचर में
हास्य और मनोरंजन।
• आलेख को संपूर्ण जानकारी और तथ्यों के आधार पर भी
लिख सकते हैं, जबकि फीचर के लिए आपको आंख, कान, भाव, अनुभूतियां और मनोवेग, आदि की सहायता लेनी पड़ती है।
फीचर और समाचार में
क्या अंतर है?
समाचार और फीचर में प्रमुख अंतर प्रस्तुतीकरण
की शैली और विषयवस्तु की मात्रा का होता है। जहाँ उल्टा पिरामिड शैली में लिखा गया
समाचार किसी विषय या घटना को संक्षिप्त रूप में प्रस्तुत करता है, वहीं फीचर उस समाचार को विस्तार से
उपस्थित करता है।
महत्वपूर्ण प्रश्न
उत्तर:-
प्रश्न 01. आलेख लेखन की परिभाषा क्या है?
उत्तर:- Aalekh
lekhan एक सर्वांगपूर्ण सम्यक विचारों का एक संयुक्त भाव होता है। आलेख एक गंभीर और व्यंग्यपूर्ण
रचना होती है।
प्रश्न 02. आलेख की भाषा की विशेषता है?
उत्तर:- भाषा सहज,
सरल और प्रभावशाली। एक ही बात पुनः न
लिखी जाए। विश्लेषण शैली का प्रयोग। आलेख ज्वलंत मुद्दों, विषयों और महत्त्वपूर्ण चरित्रों पर लिखा जाना चाहिए।
प्रश्न 03. आलेख कितने प्रकार के होते हैं?
उत्तर:- आलेख 3 प्रकार के होते हैं: दंड आलेख, आयत चित्र, बारम्बारता बहुभुज।
प्रश्न 04. आलेख के मुख्य अंग कौन कौन से हैं?
आलेख के यह मुख्य अंग हैं– भूमिका, विषय का प्रतिपादन,
तुलनात्मक चर्चा व निष्कर्ष |
प्रश्न 05. आलेख के विषय में बताइए?
उत्तर :- आलेख वास्तव में लेख का ही प्रतिरूप
होता है। यह आकार में लेख से बड़ा होता है। कई लोग इसे निबंध का रूप भी मानते हैं
जो कि उचित भी है। लेख में सामान्यत: किसी एक विषय से संबंधित विचार होते हैं।
आलेख में ‘आ’ उपसर्ग लगता है जो कि यह प्रकट करता है कि आलेख सम्यक् और संपूर्ण
होना चाहिए। आलेख गद्य की वह विधा है जो किसी एक विषय पर सर्वांगपूर्ण और सम्यक्
विचार प्रस्तुत करती है।
प्रश्न 06. आलेख
की महत्वपूर्णता | आलेख का महत्व:
उत्तर :- आलेख विषय की गहरी
समझ प्रदान करता है और पाठकों को विषय पर विचार करने के लिए प्रेरित करता है। यह
विषय की विस्तृत जानकारी प्रदान करता है और विचारात्मक दृष्टिकोण से पाठकों को
जोड़ता है।
प्रश्न 07. आलेख
के मुख्य अंग कौन कौन से हैं?
उत्तर :- पृष्ठभूमि, विषय का प्रतिपादन, तुलनात्मक चर्चा व परिणाम | सबसे
पहले शीर्षक के अनुकूल भूमिका लिखी जाती है। यह बहुत लंबी न होकर संक्षेप में होनी
चाहिए। विषय के प्रतिपादन में विषय का वर्गीकरण, बनावट, रूप व क्षेत्र आते हैं। इसमें विषय
का क्रमिक विकास किया जाता है।
प्रश्न 08. सार्थक (श्रेष्ठ) आलेख
के गुण बताइए?
सार्थक आलेख के निम्नलिखित गुण हैं –
1. नवीनता एवं ताजगी।
2. जिज्ञासाशील।
3. विचार स्पष्ट और बेबाकीपूर्ण।
4. भाषा सहज, सरल और प्रभावशाली।
5. एक ही बात पुनः न लिखी जाए।
6. विश्लेषण शैली का प्रयोग।
7. आलेख ज्वलंत मुद्दों, विषयों और महत्त्वपूर्ण चरित्रों पर लिखा जाना चाहिए।
8. आलेख का आकार विस्तार पूर्ण नहीं
होना चाहिए।
9. संबंधित बातों का पूरी तरह से
उल्लेख हो।
प्रश्न 09. सार्थक आलेख के गुणों के बारे में
विस्तार से बताइए?
उत्तर:- एक अच्छा आलेख में
कुछ आवश्यक गुण होते हैं,
जिनमें से कुछ
प्रमुख गुण हैं:
स्पष्टता: एक अच्छा आलेख को
स्पष्ट और सुबोध होना चाहिए। पाठकों को आलेख को पढ़ने में किसी भी प्रकार की
कठिनाई नहीं होनी चाहिए।
सटीकता: एक अच्छा आलेख
तथ्यों और जानकारी के सटीक होने चाहिए। पाठकों को आश्वस्त होना चाहिए कि आलेख में
दी गई जानकारी सही है।
रोचकता: एक अच्छा आलेख पाठकों
को रोचक और मनोरंजक होना चाहिए। पाठकों को आलेख को पढ़ने में आनंद मिलना चाहिए।
उद्देश्यपूर्णता: एक अच्छा आलेख का
एक स्पष्ट उद्देश्य होना चाहिए। पाठकों को यह पता होना चाहिए कि आलेख का उद्देश्य
क्या है।
प्रभावशीलता: एक अच्छा आलेख
पाठकों को प्रभावित करना चाहिए। पाठकों को आलेख के बाद किसी भी प्रकार का बदलाव
महसूस करना चाहिए।
प्रश्न 10. आलेख कैसे लिखते हैं?
उत्तर :- आलेख लिखने के लिए इन चरणों को फॉलो
करें: भाषा सरल और स्पष्ट होनी चाहिए,
विचार कथात्मक न हो कर विवेचन
विश्लेषण वाले होने चाहिए, आलेख से पाठक की जिज्ञासा उत्पन्न हो
जाए ऐसा होना चाहिए, आलेख हमेशा ज्वलंत और प्रसिद्ध मुद्दों
या समारोह पर होना चाहिए आदि।
आलेख लेखन का उदाहरण
(1) भारतीय क्रिकेट के
सरताज: सचिन तेंदुलकर
पिछले पंद्रह सालों से भारत के लोग
जिन-जिन हस्तियों के दीवाने हैं उनमें एक गौरवशाली नाम है-सचिन तेंदुलकर । जैसे
अमिताभ का अभिनय में मुकाबला नहीं,
वैसे सचिन का क्रिकेट में कोई मुकाबला
नहीं। संसार-भर में एक यही खिलाड़ी है जिसने टेस्ट क्रिकेट के साथ-साथ वन-डे
क्रिकेट में भी सर्वाधिक शतक बनाए हैं। इसीलिए कुछ क्रिकेट-प्रेमी सचिन को क्रिकेट
का भगवान तक कहते हैं। उसके प्रशंसकों ने हनुमान चालीसा की तर्ज पर सचिन-चालीसा भी
लिख दी है।
मुंबई में बांद्रा-स्थित हाउसिंग
सोसाइटी में रहने वाला सचिन इतनी ऊँचाइयों पर पहँचने पर भी मासूम और विनयी है।
अहंकार तो उसे छू तक नहीं गया है। अब भी उसे अपने बचपन के दोस्तों के साथ वैसा ही
लगाव है जैसा पहले था। सचिन अपने परिवार के साथ बिताए हुए क्षणों को सर्वाधिक
प्रिय क्षण मानता है। इतना व्यस्त होने पर भी उसे अपने पुत्र का टिफिन स्कूल
पहुँचाना अच्छा लगता है।
सचिन ने केवल 15 वर्ष की आयु में
पाकिस्तान की धरती पर अपने क्रिकेट-जीवन का पहला शतक जमाया था जो अपने-आप में एक
रिकार्ड है। उसके बाद एक-पर-एक रिकार्ड बनते चले गए। अभी वह 21 वर्ष का भी नहीं हुआ
था कि उसने टेस्ट क्रिकेट में 7 शतक ठोक दिए थे। उन्हें खेलता देखकर भारतीय लिटिल
मास्टर सुनील गावस्कर कहते थे-सचिन मेरा ही प्रतिरूप है।
(2)
भ्रष्टाचार
सत्य, प्रेम,
अहिंसा, धैर्य, क्षमा,
अक्रोध, विनय, दया,
अस्तेय आदि गुणों की उपेक्षा करना या इनके विरोधी दुर्गुणों को
अपनाना ही आचरण से भ्रष्ट होना अर्थात् भ्रष्टाचार है। भारतीय जन-जीवन के हर
क्षेत्र में भ्रष्टाचार का दुष्प्रभाव दिखाई दे रहा है। पाश्चात्य ढंग से जीवनयापन
की प्रवृत्ति अथवा भौतिकतावादी प्रवृत्ति के कारण हर गलत-सही तरीके के धनार्जन की
ललक बढ़ रही है। राजनीति को भ्रष्टाचार का संरक्षक कहा जा सकता है, क्योंकि इसकी सहायता से सारा सरकारी तन्त्र भ्रष्टाचारी बन गया है।
भाई-भतीजावाद, रिश्वतखोरी,
कालाबाजारी, दलाली तथा धोखाधड़ी आदि इसी कारण
बढ़ रहे हैं। आज खुलेआम सारे कपटाचरण चल रहे हैं, नैतिक एवं
मानवीय मूल्यों, सांस्कृतिक आदर्शों एवं जातीय चरित्रों को
तिलांजलि दी जा रही है, क्योंकि भ्रष्टाचार ने इन सभी को दबा
दिया है। भारत में भ्रष्टाचार का कलंक इतना गहरा हो गया है कि इसे कौन मिटाये,
कौन भ्रष्टाचार रूपी राक्षस को रोके? अब तो
ऊपर वाले पर ही भरोसा रह गया है।
(3)
मोबाइल फोन : वरदान या अभिशाप
भौतिक सुख-सुविधा के
साधनों को दो पक्ष सर्वमान्य हैं, एक लाभ, उपयोगिता
या वरदान पक्ष तथा दूसरा हानि, दरुपयोग एवं अभिशाप। मोबाइल
फोन के भी ये दो पक्ष हैं। मोबाइल छोटा-सा यन्त्र है और यह व्यापार-व्यवसाय,
समाचार, सूचना आदान-प्रदान के साथ ही मनोरंजन का भी उपयोगी
साधन है। अब तो स्मार्ट फोन से अनेक कार्य किये जा सकते हैं।
इन सब कारणों से
मोबाइल फोन अतीव लाभदायक है, परन्तु वैज्ञानिक शोधों के अनुसार
मोबाइल से बात करते समय रेडियो किरणें निकलती है कलती हैं, जो
हृदय, मस्तिष्क आदि पर बरा प्रभाव डालती हैं, श्रवण-शक्ति कमजोर करती हैं। मोबाइल फोन से सामाजिक अपराध भी बढ़ रहे हैं,
गेमिंग चेटिंग का रोग भी लग रहा है। इससे अपव्यय बढ़ रहा है,
किशोरों में अनेक दुर्गुण पनप रहे हैं तथा अनेक दुर्घटनाएँ भी हो
रही हैं। इस दृष्टि से मोबाइल को अभिशाप माना जा रहा है।
(4)
खाद्य पदार्थों में मिलावट : एक चुनौती
यह युग अर्थ-प्रधान
है, धनार्जन
की होड़ में, अधिक से अधिक मुनाफा कमाने अथवा रातोंरात
धन्नासेठ बनने की होड़ से लोगों में इतना लालच बढ़ गया है कि वे खाद्य-पदार्थों
में मिलावट के नये-नये तरीके अपना रहे हैं और नैतिकता एवं मानवता से गिरकर आम जनता
के जीवन के साथ खिलवाड़ कर रहे हैं। हमारे यहाँ के उद्योगपति विश्व के अनेक धनवान
देशों की बीमार औद्योगिक इकाइयों का अधिग्रहण कर चुके हैं।
जो घी, तेल, दूध, पनीर, पिसे हुए मिर्च-मसाले, हल्दी
आदि में खुलेआम मिलावट कर रहे हैं। बेसन, चाय पत्तियाँ,
डिब्बाबन्द रसदार पदार्थ आदि में मिलावट इतनी बढ़ गयी है कि अब
शुद्धता की परख करना चुनौती बन गई है। स्वास्थ्यरक्षक कीमती दवाओं में तथा बड़ी
नामी कम्पनियों के उत्पादों में भी मिलावट मिल रही है। इस तरह खाद्य-पदार्थों में
मिलावट को रोक पाना और इस क्षेत्र में फैल रहे. भ्रष्टाचार को रोक पाना कठिन हो
रहा है। इस विकट चुनौती का सामना कैसे हो यह विचारणीय है।
(5) घटते संयुक्त परिवार : बढ़ते खतरे
हमारे देश में
सदियों से संयुक्त परिवार की जो उत्तम परम्परा प्रचलित थी, वह
आज के भौतिकवादी एवं भोगवादी युग में निरन्तर घट रही है। संयुक्त परिवार में
सुख-दु:ख, आनन्द-उल्लास तथा विपदा आदि को सम्मिलित रूप से
भोगा जाता था। इस कारण उसमें आपसी प्रेम-भाव की प्रगाढ़ता थी, परन्तु अब संयुक्त परिवार टूट रहे हैं और एकल परिवार का नया दौर सब ओर
दिखाई दे रहा है।
घटते संयुक्त परिवार
से सामाजिक परिवेश में अनेक खतरे बढ़ रहे हैं। भोगवादी स्वार्थी प्रवृत्ति के कारण
मानवीय संवेदना एवं प्रेम-भाव घट रहा है, सहयोग-सहानुभूति,
सामाजिकता एवं सह-अस्तित्व की भावना लुप्त हो रही है। पिता-पुत्र,
सास-बहू, दादा-पोता आदि के सम्बन्ध कमजोर पड़
गये हैं। इस तरह स्वार्थपरता की वृद्धि एवं पारिवारिक संगठन की हानि के खतरे बढ़
गये हैं।
(6)
टी.वी. विज्ञापन और उनका प्रभाव
आजकल टी.वी. पर सौन्दर्य-प्रसाधनों, जंक
फूड एवं पेय-पदार्थों और अन्तःपरिधानों से सम्बन्धित विज्ञापनों की भरमार है।
त्वचा को निखारने, गोरा बनने, पिंडलियों
तक केश लम्बा करने, ताकत बढ़ाने, याददाश्त
तेज करने, दाग-धब्बे मिटाने आदि के विज्ञापन टेलीविजन के
चैनलों पर बड़े लुभावने रूप में प्रसारित होते हैं। कोई भी रोचक कार्यक्रम हो,
समाचार-प्रसारण हो या चलचित्र चल रहा हो, बीच
में ही विज्ञापन चल पड़ते हैं तथा दूध में मक्खी की तरह सर्वथा अरुचिकर लगते हैं।
वस्तुतः टी.वी. पर
विज्ञापनों के प्रसारण से दर्शकों पर सकारात्मक और नकारात्मक दोनों प्रभाव पड़ते
हैं। कुछ लोग तो विज्ञापनों के चक्कर में आकर जेब खाली कर देते हैं और कुछ गलत
आचरण करने, नकल करने एवं फैशनपरस्ती को सुखी जीवन मानने लगते हैं। इससे
वे ठगे जाते हैं, अर्थहानि उठाते हैं अथवा बदनीयती के शिकार
हो जाते हैं। वहीं दूसरी तरफ विज्ञापन तकनीकी और सामाजिक ज्ञान भी देते हैं।
(7)
रोजगारोन्मुखी शिक्षा की आवश्यकता
स्वतन्त्रता
प्राप्ति के बाद बुनियादी शिक्षा एवं बहुउद्देश्यीय शिक्षा की ओर ध्यान नहीं दिया
गया। शिल्प-कला के कुछ गिने-चुने प्रशिक्षण संस्थान अवश्य खोले गये, परन्तु
उनसे युवावर्ग को उचित रोजगार उपलब्ध नहीं हो सके। वर्तमान में जिस तरह बेरोजगारी
बढ़ रही है, पढ़े-लिखे युवा इधर-उधर भटक रहे हैं, इसे देखकर स्पष्ट हो जाता है कि. देश में व्यावसायिक एवं रोजगारोन्मुखी
शिक्षा की परम आवश्यकता है।
इसके लिए माध्यमिक
कक्षाओं से ही ऐसे पाठ्यक्रमों एवं व्यावसायिक शिक्षा को अपनाया जाना चाहिए। भले ही
इस समय अनेक तकनीकी संस्थान चल रहे हैं, परन्तु उनमें
प्रशिक्षण शुल्क अत्यधिक है तथा रोजगार के साधनों की कमी है। अतः आज ऐसी शिक्षा की
जरूरत है, जो युवावर्ग को स्वरोजगार के लिए प्रेरित कर सके।
(8)
आतंकवाद
आतंकवाद यद्यपि आज
सारे विश्व में पैर पसार रहा है, तथापि इसका भारत में अधिक उग्र रूप
दिखाई दे रहा है। आतंकवाद ने आज मानव-जीवन को अत्यन्त दयनीय और असुरक्षित बना दिया
है। विश्व का कोई कोना आज मौत के इन सौदागरों से सुरक्षित नहीं है। मुम्बई,
पुणे, हैदराबाद, अहमदाबाद,
जयपुर एवं दिल्ली आदि शहरों में पिछले कुछ वर्षों में आतंकवादियों
ने जन-धन को अत्यधिक हानि पहुँचाई है।
भारत में आतंकवाद
एवं उग्रवाद पड़ोसी देश पाकिस्तान और कुछ आतंकवादी संगठनों के द्वारा छद्म रूप में
चलाया जा रहा है। कश्मीर में पाकिस्तान से जुड़ती सीमा पर प्रतिदिन आतंकवादी अपना
सिर उठा रहे हैं। वे कई बार आत्मघाती हमला कर रहे हैं। हमारे सुरक्षाकर्मी आतंकवाद
का पूरी क्षमता से सामना कर रहे हैं। सरकार भी इस दिशा में गम्भीरता से प्रयास कर
रही है।
(9)
स्त्री-शिक्षा की महत्ता
सभ्य समाज एवं
विकसित राष्ट्र में पुरुष के समान ही स्त्री-शिक्षा का विशेष महत्त्व है। 'यत्र
नार्यस्तु पूज्यन्ते रमन्ते तत्र देवताः' आदिकाल से हमारा
देश नारी-पूंजक रहा है। शिक्षित नारी तो दो कुलों का उद्धार करती है। नारी को
अशिक्षित रखकर राष्ट्र की आधी क्षमता का विनाश किया जा रहा है। शिक्षा नारी में
आत्मविश्वास पैदा करती है। शिक्षित नारी गृहस्थ जीवन का सही ढंग से संचालन करती
है।
बच्चों पर पिता की अपेक्षा माता का विशेष प्रभाव पड़ता है। वह अपनी सन्तान
को योग्य नागरिक बनाती है। हमारे समाज में पुरुष प्रायः घर से बाहर रहते हैं,
नौकरी या व्यवसाय के कारण घर के काम नहीं कर पाते हैं। ऐसी दशा में गृहिणी
यदि शिक्षित है, तो वह घर के सारे काम समझदारी से कर देती
है। शिक्षित स्त्रियाँ पुरुषों के समान सारे कामों में सफल रहती हैं। वे नौकरी,
व्यवसाय, चिकित्सा आदि विविध क्षेत्रों में
अपनी योग्यता सिद्ध कर देती है। इस तरह समाज में स्त्री-शिक्षा की महत्ता सर्वोपरि
है।
(10)
परीक्षा के दिन
परीक्षा कैसी भी हो
और किसी की भी हो, परीक्षा परीक्षा होती है, यह परीक्षा के दिन अन्य दिन के मुकाबले किस तरह भारी पड़ते हैं, यह वही अच्छी तरह समझ सकता है, जो परीक्षा के दौर से
गुजर रहा होता है। विद्यार्थी की घबराते हैं। इस कारण परीक्षा के दिन आते ही उनके
हृदय की धड़कन बढ़ जाती है। साल भर तक काफी मेहनत और लगन से परीक्षा की तैयारी
करने पर भी जब परीक्षा के दिन आते हैं तो उत्सुकता और बेचैनी बढ़ जाती है।
खेलकूद लगभग बन्द हो
जाते हैं। टीवी देखना, घूमने जाना न के बराबर होता है। प्रायः सभी
छात्र परीक्षा के दिनों में अत्यधिक सावधानी से तैयारी करते हैं, पढ़े हुए एवं याद किये गये पाठों को दुहराते हैं। रात में काफी देर तक
जागते हैं और अगले दिन की परीक्षा के लिए मन को. मजबूत करते हैं। परीक्षा में
प्रश्न-पत्र सरल आने पर प्रसन्न हो जाते हैं और उमंग के साथ अगले पेपर की तैयारी
में लग जाते हैं। इस प्रकार परीक्षा के दिन सभी छात्रों के लिए अतीव महत्त्वपूर्ण
होते हैं।
(11) निःशुल्क कन्या
शिक्षण के परिणाम
अथवा
निःशुल्क कन्या
शिक्षण
शिक्षा के द्वारा
बालक/बालिका के शरीर, मस्तिष्क और आत्मा का विकास होता है।
प्राचीन भारत में बालकों के साथ ही बालिकाओं को शिक्षा दी जाती थी, परन्तु मध्य काल के बाद सभी स्वस्थ परम्पराएँ एकदम लुप्त हो गईं। परन्तु
देश में स्वतन्त्रता-प्राप्ति के बाद शिक्षाविदों ने कन्या-शिक्षा का पूरा समर्थन
किया। पहली बार सरकार ने अहिल्याबाई कन्या निःशुल्क शिक्षा योजना प्रारम्भ की।
फलस्वरूप सभी
राज्यों ने निःशुल्क कन्या शिक्षा की सुविधा प्रदान की। इससे कन्या-शिक्षा को
बढ़ावा मिला। समाज को मजबूत करने और अपराध दर को कम करने के लिए और भारत को आर्थिक
रूप से विकसित करने के लिए लड़कियों की शिक्षा बहुत महत्त्वपूर्ण है। राजस्थान सरकार
ने माध्यमिक शिक्षा तक कन्याओं को निःशुल्क शिक्षण का जो अध्यादेश प्रसारित किया, उसके
परिणामस्वरूप सारे राज्य में कन्याओं के साक्षरता प्रतिशत में आशानुरूप वृद्धि
हुई। वर्तमान में, निःशुल्क कन्या शिक्षण के परिणाम अतीव
सन्तोषप्रद दिखाई दे रहे हैं।
(13)
बालश्रम और उपेक्षित बचपन
बालश्रम समस्त विश्व
की ज्वलन्त समस्या है। भारत में भी इसका व्यापक असर है। संयुक्त राष्ट्र महासभा ने
सन् 1979 में बालश्रम के विरोध में प्रस्ताव पास किया, भारत
सरकार ने भी सन् 1986 में बालश्रम निषेध कानून बनाया, जिसमें
चौदह वर्ष से कम आयु के बच्चों से काम कराना अपराध माना गया है। वस्तुतः बालश्रम
के कारण ही गरीब बच्चों का बचपन काफी कष्टमय बीतता है।
ऐसे बच्चों को न तो शिक्षा प्राप्त करने की सुविधा मिलती है और न
हँसी-खुशी, खेलकूद तथा मनोरंजन आदि का अवसर मिलता है तथा
उन्हें बंधुआ जीवन जीना पड़ता है। इस समस्या के निवारण के लिए सरकार ने 'राष्ट्रीय बालक अधिकार संरक्षण आयोग' तथा 'बाल श्रम उन्मूलन अधिनियम' बनाकर इस दिशा में
जन-जागरण का प्रयास किया है।
इसके अलावा भी सरकार
ने देश को बालश्रम से पूर्णतः मुक्त करवाने के लिए "निषेध और विनियमन एक्ट
1986" और "देखभाल और संरक्षण एक्ट 2000" भी पारित किए हैं। लेकिन
जब तक हम और आप उन कानूनों का सही ढंग से अनुसरण नहीं करेंगे तब तक देश को बालश्रम
से पूरी तरह मुक्त कराना सम्भव नहीं है।'
(14)
एकल परिवार
प्राचीन काल में
हमारे देश में संयुक्त परिवार की उत्तम परम्परा प्रचलित थी; जिसमें
सुख-दुःख, आनन्द-उल्लास आदि का सम्मिलित आस्वाद लिया जाता था,
परन्तु आज के अर्थ-प्रधान भोगवादी युग में संयुक्त परिवार टूट रहे
हैं और एकल परिवार का नया दौर सब ओर दिखाई दे रहा है।
एकल परिवार - परिवार
का मुखिया पुरुष, उसकी पत्नी और एक या दो बच्चे - यही स्वरूप
अब परिवार का रह गया है। ऐसे एकल परिवार में भले ही अपनी ही प्रगति की चिन्ता रहती
है, अपना ही हित प्रमुख माना जाता है और स्वावलम्बन की
दृष्टि से काफी हद तक कुछ ठीक भी लगता है, परन्तु इसमें
सामाजिकता का अभाव रहता है, स्वार्थपरता और पारिवारिक विघटन
की भावना बढ़ती है। अतः सामाजिक सहअस्तित्व की भावना से 'एकल
परिवार' काफी दूर चले गये हैं।
(15)
उपेक्षित वृद्धावस्था।
वर्तमान में पुरानी
पीढ़ी और नयी पीढ़ी के मध्य वैचारिक मतभेद होने से, बुजुआ परम्परा को
दकियानूसी मानने से तथा पाश्चात्यानुकरण की गलत प्रवृत्तियों से हमारे देश के
अधिकतर वृद्ध उपेक्षित जीवन जी रहे हैं। उन्हें यह उपेक्षा अपनी ही सन्तान और अपने
ही परिवार के सदस्यों से मिल रही है चाहे चिकित्सा, खान-पान
तथा सामाजिकता हो, चाहे आजीविका हो, सब
तरह वृद्ध लोग उपेक्षित रहते हैं। युवाओं के स्वेच्छाचरण का सर्वाधिक कुप्रभाव
वृद्धों पर पड़ रहा है। शहरों में बुजुर्ग अकेले और अलग-थलग पड़ जाते हैं। जिन
संयुक्त परिवारों में वृद्ध रहते हैं, उनके प्रति भी परिवार
के लोगों का दृष्टिकोण बदल रहा है। इस समस्या को ध्यान में रखकर अनेक शहरों में
वृद्धाश्रम या वृद्ध-सेवा सदन स्थापित हो रहे हैं, जहाँ पर
वृद्धों को पूरे सत्कार-सम्मान के साथ रखा जाता है।
(16)
शिक्षा को मौलिक अधिकार बनाने के परिणाम
हमारे देश का
संविधान विश्व का सबसे विस्तृत संविधान है। देश की स्वतंत्रता के 52 वर्षों तक हम
शिक्षा को वह महत्त्व नहीं दे पाए जो उसे मिलना चाहिए। देश का प्रत्येक पांचवां
बच्चा अशिक्षित है। भारत सरकार द्वारा संविधान में संशोधन कर जो अधिनियम जारी किया
है, तदनुसार
बालकों को यह मौलिक अधिकार प्राप्त है कि वे निःशुल्क, निर्बाध
और अनिवार्य प्राथमिक शिक्षा ग्रहण करें।
इसका परिणाम अभी
पूरी तरह सामने नहीं आया है, परन्तु ऐसा अनुमान है कि इससे लगभग
एक करोड़ ऐसे बच्चों को लाभ मिलेगा जो अभी स्कूलों से बाहर हैं। केन्द्र सरकार ने
इस योजना के लिए राज्य सरकारों को पच्चीस हजार करोड़ रुपये उपलब्ध कराये हैं। यह
तो प्रारम्भिक व्यवस्था है जो आगे निरन्तर बढ़ती रहेगी। शिक्षा को मौलिक अधिकार
बनाने से सरकार के साथ समाज का भी दायित्व बढ़ गया है। इससे निम्न वर्ग के बालकों
का हित होगा, साक्षरता का प्रतिशत बढ़ेगा और समाज-कल्याण का
मार्ग प्रशस्त हो सकेगा।
(17)
नशे की लत से जकड़ता युवा वर्ग
आज देश का युवा वर्ग
अनेक कुंप्रवृत्तियों से ग्रस्त है। नशे की लत भी एक कुप्रवृत्ति या दुर्व्यसन है।
आज युवा वर्ग हेरोइन, ब्राउन शुगर, स्मैक,
चरस, शराब आदि नशीले पदार्थों का सेवन करने
लगा है। नशे का प्रचलन युवा वर्ग में देखा-देखी या साथियों के प्रभाव आदि से बढ़
रहा है, तो कुछ सम्पन्न घरों के युवकों में
शराब-ह्विस्की-बीयर का सेवन करना उनका स्टेटस हो गया है। नशा-माफिया इस कुप्रवृत्ति
को बढ़ाने में पूरा सहयोग कर रहे हैं।
प्रारम्भ में युवक
युवतियों को फुसलाया-ललचाया जाता है, एक-दो खुराक मुफ्त
में दी जाती है, फिर उनका हर तरह से शोषण किया जाता है। नशे
की लत से जकड़ता युवा वर्ग समाज को अपराधों की ओर ले जा रहा है। नशा करने के बाद
उनके लिए लड़ाई-झगड़ा करना भी एक आम बात हो गई है। नशा करने से मानव के विवेक के
साथ सोचने-समझने की शक्ति नष्ट हो जाती है। वह अपने हित-अहित और भले-बुरे का अन्तर
नहीं समझ पाता। नशे की लत से धीरे-धीरे वह अनेक बीमारियों से ग्रसित हो जाता है।
यह स्थिति अतीव चिन्तनीय बन रही है।
(18) अर्थ
ऑवर : प्रकृति की चिन्ता
वर्तमान में सारा
संसार पर्यावरण प्रदूषण की समस्या से आक्रान्त है। इस कारण सभी देश ग्लोबल
वार्मिंग के प्रयास किये जा रहे हैं। पर्यावरण बचाना सिर्फ हाशिये की इबादत नहीं
है, वह
मुख्यधारा का सवाल है, जिससे हमारा और हमारी धरती का भविष्य
जुड़ा है। इसी दृष्टि से सन् 2007 में सिडनी में अर्थ-ऑवर की शुरुआत की गई। तब से
प्रतिवर्ष 23 मार्च को अर्थ-ऑवर में सम्मिलित होने वाले लोग रात 8.30 बजे से एक
घण्टे तक घरों की बिजली बन्द रखते हैं। इस वर्ष अर्थ-ऑवर के इस अभियान में लगभग दो
अरब लोगों ने भाग लिया।
इसकी लोकप्रियता ने
इसे अन्तर्राष्ट्रीय रूप दे दिया और अब एक सौ पचास देश इसके समर्थक हैं। यह आयोजन
प्रतीकात्मक है जो हमें धरती और पर्यावरणं का सम्मान करना सिखाता है। इस अभियान से
ग्रीन हाउस गैसों के खतरनाक उत्सर्जन को रोकने तथा पर्यावरण संरक्षण की प्रेरणा
मिलती है। अर्थ ऑवर के समय हम याद कर सकते हैं कि यह दुनिया हमारे लिए ही नहीं बनी
है, उन
लोगों के लिए भी है, जो वंचित है, बल्कि
यह पशु-पक्षियों, वनस्पति सबकी है।
(19)
भूकम्प से सहमा राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र
विगत वर्ष जापान में
आये प्रलयकारी भूकम्प और उसके साथ आयी सुनामी से जन-धन की अपार हानि हुई। उसके
तुरन्त बाद भारत में एक हल्का-सा भूकम्प आया, जिससे सारा
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र एकदम सहम गया, क्योंकि
भूवैज्ञानिकों के सर्वेक्षण के अनुसार राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली क्षेत्र भूकम्प की
दृष्टि से अति संवेदनशील जोन चार में आता है।
जिस रफ्तार से
दिल्ली की आबादी बढ़ रही है, उससे तबाही की भयानकता का अंदाजा
लगाया जा सकता है। दिल्ली की इमारतों की नींव कमजोर है, खास
कर पुरानी दिल्ली की इमारतें इतनी खस्ता हाल हैं कि वे भूकम्प का सामना शायद ही कर
सकें। अतएव जापान की त्रासदी को देखते हुए भूकम्प की दृष्टि से संवेदनशील
राष्ट्रीय राजधानी क्षेत्र में रहते हुए सावधानी और अग्रिम तैयारी करना समय की माँग
है।
(20) तेल
की धार से बढ़ती महँगाई की मार
भारत में आम आदमी पर
महँगाई की जो मार पड़ रही है, उसमें पेट्रोल और डीजल के दामों में
बार-बार बढ़ोतरी का प्रमुख हाथ है। अर्थशास्त्रियों ने भी पेट्रोलियम पदार्थों के
मूल्यों में निरन्तर वृद्धि होने से महर ने से महँगाई की रफ्तार और बढ़ने की आशंका
व्यक्त की है। तेल की धार को लेकर भारत ही नहीं, सारे विश्व
में अशान्ति व्याप्त है। हमारे देश में पहले तेल की कीमतें सरकार तय करती थीं,
परन्तु अब तेल-कम्पनियाँ स्वयं तय करती हैं और पेट्रोलियम पदार्थों
पर आयात मूल्य के अनुसार उन्हें कीमतें बढ़ाने का अधिकार दिया गया है।
पिछले साल इस नीति
के कारण लगभग तीस प्रतिशत मूल्य-वृद्धि हुई है। पेट्रोल-डीजल की इस मूल्य-वृद्धि का
असर आम जनता पर पड़ रहा है। प्रतिदिन वस्तुओं के दामों में इजाफा होना देशवासियों
के लिए भीषण समस्या है। प्रत्येक समय देश की सरकार महँगाई को कम करने की बात करती है, लेकिन
उल्टा ही देखने को मिलता है और इस बढ़ती महंगाई की मार आम आदमी को झेलनी ही पड़ती
है। फलस्वरूप उसे महँगाई डायन खाये जा रही है।
(21)
नक्सलिया का दुस्साहस
गत कुछ वषों में
नक्सलियों ने झारखण्ड, छत्तीसगढ़ एवं उड़ीसा में जो हिंसा फैलायी
और दुस्साहस का परिचय दिया, वह सर्वविदित है। अब उड़ीसा के
कोरापुट जिले में पहले एक जिलाधिकारी का और फिर एक विधायक का अपहरण कर उन्होंने
दुस्साहस का परिचय दिया। इसके बाद छत्तीसगढ़ में सीआरपीएफ के छिहत्तर जवानों के
अलावा लगभग बीस पुलिस वालों की घेर कर हत्या कर दी।
बिहार में रेल पटरी
उड़ाकर रेल दुर्घटना कराई, जिसमें कई यात्री मारे गये। गया में दो
टावर और पुल उड़ा दिये। इसी तरह नक्सलियों द्वारा आये दिन आदिवासी क्षेत्रों में न्याय-निर्णय
के नाम पर नरसंहार किये जा रहे हैं। अब यह आन्तरिक सुरक्षा के लिए खतरा बन रहा है।
नक्सली सामाजिक परिवर्तन के नुमाइंदे नहीं बल्कि इंसानियत के दुश्मन और देशद्रोही
हैं। नतीजा सामने है। उनकी ताकत बढ़ती जा रही है और उनके हमले से पुलिस जवानों का
हौंसला पस्त हो रहा है। नक्सलियों का हिंसक कृत्य समाज व देशहित के विरुद्ध एक
युद्ध हैं।
(22) पिंकसिटी
जयपुर का बदरूप
राजस्थान की राजधानी
जयपुर नगर अपनी सुनियोजित बसावट के कारण भारत का पेरिस एवं गुलाबी शहर के नाम से
विख्यात है। जिसे आज पुराना शहर कहते हैं, उसकी सड़कें,
गलियाँ, बाजार, बरामदे
तथा चौपड़ें सब वास्तुशिल्प के उत्कृष्ट उदाहरण हैं। वे सब आज भी पर्यटकों को
आकृष्ट करते हैं। साथ ही जन्तर मन्तर, हवामहल, सिटी पैलेस, म्यजियम आदि इसके आकर्षण के केन्द्र
हैं।
परन्त पिछले कछ
वर्षों में यहाँ पर हजारों गह-निर्माण समितियों ने जिन नयी कॉलोनियों, उपनगरों
एवं बस्तियों को मनमर्जी से बसाया, बिना नाप-नक्शे की जो सर्पाकार
सड़कें प्रस्तावित की, उनसे इस सुन्दर नगर का स्वरूप एकदम
विकृत हो गया है। सरकारी तन्त्र की लालफीताशाही, जनसंख्या की
अतिशय वृद्धि एवं अनियोजित कॉलोनियों-उपनगरों की बसावट से जयपुर की प्रसिद्ध
स्थापत्य-कला बदरूप हो गई है।
(23)
खाद्य-संकट
विश्व के प्रमुख
देशों के अन्तर्राष्ट्रीय संगठन ऑक्सफैम ने कुछ दिनों पूर्व यह चेतावनी दी है कि
यदि विश्व की खाद्य-व्यवस्था में सधार नहीं किया गया, तो
न केवल कीमतें बढ़ेगी. अपित आगामी वर्षों में खाद्य-आपति का संकट पैदा हो जायेगा।
विश्व-बैंक का भी ऐसा ही अनुमान है। हमारे देश में भी लोगों को खाद्य-सामग्री पर
आय के अनुपात में दो गुना खर्च करना पड़ता है। खाद्य एवं कृषि संगठन की रिपोर्ट के
अनुसार, भारत की तकरीबन 14.8 प्रतिशत जनसंख्या कुपोषित है।
मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में इस संकट की वजह से खाद्यान्न की कीमतों में
छत्तीस प्रतिशत तक की वृद्धि हो गई है।
इसके बावजूद
विश्व-नेतृत्व इन हिदायतों को गम्भीरता से नहीं लेता दिखाई दे रहा है। भारत जैसे
विशाल कृषि-क्षेत्र वाले देश में भी बड़ी आबादी खाद्यान्न संकट का सामना कर रही है
और गरीब जनता सरकार से सस्ता अनाज उपलब्ध कराने की आशा लगा रही है। यदि भारत को
विकसित राष्ट्रों की सूची में शामिल होना है, तो उसे अपनी खाद्य
सुरक्षा सुनिश्चित करनी होगी। खाद्य सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए सरकार ने कई प्रयास
किए-राष्ट्रीय कृषक नीति, खाद्य सब्सिडी योजना, राष्ट्रीय वर्षापोषित क्षेत्र प्राधिकरण की स्थापना।
(24) पंचायतों में कम्प्यूटर क्रान्ति
हमारे देश में इस
समय लगभग ढाई लाख पंचायत कार्यालय हैं। पंचायती राज्य मन्त्रालय के आँकड़ों के
हिसाब से इनमें से सिर्फ 58,291 पंचायतों के पास ही कम्प्यूटर हैं। एक सर्वेक्षण से
यह जानकारी मिलती है कि इनमें से ज्यादातर कम्प्यूटर या तो काम करते ही नहीं, या
वहाँ कोई ऐसा नहीं है जो इन्हें चला सके।
डिजिटल एम्पावरमेंट
फाउण्डेशन और भारतीय नेशनल इण्टरनेट एक्सचेंज ने इसके लिए एक डिजिटल पंचायत
परियोजना बनाई है, जो देश के इस डिजिटल डिवाइड को खत्म कर
सकती है। पिछले पांच साल से यह कोशिश की जा रही है कि हर पंचायत की अपनी एक
वेबसाइट और सभी पंचायतों को डिजिटल बनाया जावे। इस तरह कम्प्यूटर क्रान्ति अथवा
डिजिटल पंचायतों से देश के विकास की सभी योजनाएँ सफल हो सकती हैं।
(25) गंगा की पवित्रता की चिन्ता
गंगा नदी की
पवित्रता बनाए रखने की मांग को लेकर हरिद्वार आदि स्थानों पर अनेक बार अनशन के दौर
चलते रहते हैं। इसमें गंगा की पवित्रता की चिन्ता भी हो सकती है और राजनीति भी।
वस्तुतः भौतिक रूप से न सही, पर भावनात्मक रूप से भी गंगा की जो
और जितनी पवित्रता आज विद्यमान है वह गंगा विकास प्राधिकरण जैसे सरकारी
कार्यक्रमों की वजह से नहीं, बल्कि कुम्भ और मकर संक्रान्ति
के पवित्र स्नान के कारण शेष है।
इन पर्यों पर गंगा
में डुबकियाँ हमें याद दिलाती हैं कि वह हमारे लिए माँ की गोद है। इस तरह गंगा के
प्रति सच्चा श्रद्धा भाव रखने से इसकी पवित्रता पर आया संकट दूर हो सकता है। वैसे
भी आस्तिक भावना से गंगा हमारी माता है, वह पापों से मुक्त
करती है। इस आस्था से भी हमें गंगा की पवित्रता की चिन्ता करनी चाहिए।
गंगा-स्वच्छता को लेकर चलाये जा रहे सभी अभियानों का यही उद्देश्य है।
(26) विद्यालय का अन्तिम दिन
परीक्षा प्रारम्भ
होने से दस दिन पूर्व हमें परीक्षा की तैयारी का अवकाश मिला। तब ग्यारहवीं कक्षा
के छात्रों ने एक. विदाई समारोह आयोजित किया। निश्चित दिन और समय पर हम सभी सभाकक्ष
में एकत्र हुए। इस अवसर पर गुरुजनों ने हमारे उज्ज्वल भविष्य की कामना करते हुए
प्रेरणादायी शब्द कहे, आशीर्वाद देकर शुभकामना व्यक्त की। कक्षा
ग्यारह के छात्रों ने भी अपने विचार व्यक्त किये।
प्रधानाचार्यजी ने
हमें गुलाब के फूल दिये और ग्यारहवीं के छात्रों ने पुष्पमालाएँ पहनाईं।
तत्पश्चात् प्रधानाचार्यजी ने हमें सलाह दी कि हम साहस और ईमानदारी से जीवन की
कठिनाइयों का मुकाबला करें। उन्होंने कहा कि हम अपने जीवन का कोई लक्ष्य तय कर लें
और ईमानदारी से उसे प्राप्त करने में जुट जायें। इस प्रकार मंगलकामना और प्रेम-भाव
से हमें विद्यालय से विदाई दी गई। विद्यालय का वह अन्तिम दिन हमारे लिए भावुकता और
उल्लास से भरा रहा।
(27) लिंगभेद
का बुरा पक्ष
अथवा
लिंगभेद से असन्तुलन
वर्तमान में अनेक
राज्यों में कन्या-भ्रूण हत्या के कारण लिंगानुपात में असन्तुलन आ गया है। अल्ट्रासाउण्ड
मशीन से लिंग जानकर कन्या-जन्म को रोका जा रहा है। यह नृशंस अपराध है। इससे लड़कों
की अपेक्षा लड़कियों की संख्या पच्चीस प्रतिशत तक कम हो गई है। इस कारण सुयोग्य
युवकों की शादियाँ नहीं हो पा रही हैं। एक सर्वेक्षण के अनुसार भारत में प्रतिदिन
ढाई हजार कन्या-भ्रूणों की हत्या हो रही है। यह क्रूर एवं निर्मम कृत्य लिंगभेद का
बुरा पक्ष है।
लिंगभेद की यह
मानसिक विकृति नारी के बहिन, भार्या एवं माता रूप की महिमा को
नष्ट कर रहा है। महिलाओं को सामाजिक और पारिवारिक रूढ़ियों के कारण विकास के कम
अवसर मिलते हैं, जिससे उनके व्यक्तित्व का पूर्ण विकास नहीं
हो पाता है। मानव-सभ्यता के लिए यह कलंक है। लिंगभेद को कम करने के लिए सरकार
द्वारा, 'बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ', 'वन
स्टॉप सेंटर योजना', 'महिला हेल्पलाइन योजना' और 'महिला शक्ति केन्द्र' जैसी
योजनाओं के माध्यम से महिला सशक्तीकरण का प्रयास किया जा रहा है।
(28)
शिक्षा का निजीकरण/व्यवसायीकरण
लोकतान्त्रिक
व्यवस्था में शिक्षा का विशेष महत्त्व है और हमारे संविधान में शिक्षा को राज्य
तथा केन्द्र सरकार का विषय माना गया है। सरकारें बजट-निर्धारण तो करती हैं, परन्तु
तदनुसार उचित व्यवस्था नहीं कर पाती हैं। विगत तीन दशकों से शिक्षा के निजीकरण के
जो नियम बने हैं, उनसे व्यवसायीकरण की प्रवृत्ति बढ़ी है।
फलस्वरूप बड़े बड़े पूँजीपतियों ने अनेक पब्लिक स्कूल और शिक्षण-संस्थान स्थापित
कर दिये हैं।
विकास और शैक्षणिक
गतिविधियों के नाम पर वे भारी फीस वसूल करते हैं। कोचिंग सेन्टरों के नाम पर
शिक्षा-क्षेत्र में नया व्यवसाय चल पड़ा है। इन कारणों से शिक्षा काफी महँगी हो गई
है। शिक्षा के निजीकरण से सामान्य जनता को खूब लूटा जा रहा है। शैक्षिक संस्थानों
के प्रशासकों की मनमानी को रोकने के लिए सरकार उचित कानून बनाकर शिक्षा के निजीकरण
से उत्पन्न समस्याओं को रोके ताकि देश की नींव को सुरक्षित रखा जा सके और
प्रशासकों को शिक्षा की पवित्रता और महत्ता को महसूस कराया जा सके।
(29)
अन्तरिक्ष पर भारत का दबदबा
अन्तरिक्ष अनुसन्धान
के क्षेत्र में भारत का दबदबा निरन्तर बढ़ रहा है। कुछ दिनों पूर्व पीएसएलवीसी-16
के द्वारा एक साथ सात उपग्रहों को अन्तरिक्ष में प्रक्षेपित कर यह सिद्ध कर दिया
है कि भारत का अन्तरिक्ष प्रक्षेपण यान केवल भरोसेमन्द ही नहीं, बल्कि
किफायती भी है। इस बार प्रक्षेपित किये गये उपग्रह 'रिसोर्टसैट-2'
के साथ ही लगभग आठ हजार करोड़ के वैश्विक प्रक्षेपण बाजार में भारत
की विश्वसनीयता तथा धमक भी बढी है। पीएसएलवी प्रक्षेपण यान के मामले में भारत ने
जहाँ विशेषज्ञता हासिल कर ली है, वहीं इससे उत्साहित होकर 'इसरो' अमेरिकी अन्तरिक्ष एजेंसी 'नासा' के सहयोग से 'मिशनमून'
पर विचार कर रहा है। इससे भी अन्तरिक्ष जगत् में भारत की अनवरत बढ़त
के संकेत मिलने लगे हैं।
(30) किसानों
की समस्याएँ
देश के औद्योगिक और
बुनियादी ढाँचे की परियोजनाओं के कारण एक ओर किसानों की उपजाऊ जमीन का अधिग्रहण
किया जा रहा है, तो दूसरी ओर कहीं सूखा पड़ने से, कहीं
कर्ज का बोझ बढ़ जाने से तथा अपने विस्थापन के दंश से किसानों को मुसीबतों का
सामना करना पड़ रहा है। सरकारी सहायता की घोषणाएँ अधूरी रहती हैं, पैकेज का लाभ बिचौलिये खा जाते हैं। फलस्वरूप किसान न तो विस्थापन और सूखे
का मुकाबला कर पाते हैं तथा न कर्ज से उबर पाते हैं। इसका दुष्परिणाम कर्ज में डूबे किसानों की लगातार हो रही
आत्महत्याओं के रूप में सामने आ रहा है। अब किसान केवल कर्ज के बोझ से ही नहीं,
छोटी-मोटी पारिवारिक समस्या से भी अचानक जहर खा रहे हैं, आत्महत्या करने को विवश हो जाते हैं। लगता है कि अब भारत के किसानों की
यही नियति बन गई है।
(31)
बचपन की पढ़ाई शिखर की चढ़ाई
एक बच्चा अपने
शुरुआती वर्षों के दौरान जो अनुभव पाता है, जो क्षमताएँ
विकसित करता है, उसी से दुनिया को लेकर उसकी समझ निर्धारित
होती है और यह तय होता है कि वह आगे चलकर कैसा इन्सान बनेगा। स्कूली अनुभव के लिए
तीन महत्त्वपूर्ण पहलुओं पर ध्यान देना आवश्यक है। पहली बात एक इन्सान के तौर पर
बच्चे का अनुभव, दूसरी बात पठन-पाठन की प्रक्रिया, तीसरा स्कूल की दुनिया के साथ जुड़ाव को बच्चा किस तौर पर लेता है।
इस आधार पर हम यह
देखने की कोशिश करते हैं कि हमारे ज्यादातर स्कूलों की वास्तविकता क्या है। बच्चे
के लिए स्कूल एक ऐसी जगह है जहाँ कठोर अनुशासन व नियम-कायदों का पालन करना होता
है। बचपन में माता-पिता और अध्यापक जैसा बच्चों व सिखाते हैं वैसा ही बच्चे सीखते
हैं। उनको जिस प्रकार के वातावरण में रखते हैं वे वैसे ही बन जाते हैं। इसलिए
बच्चों को बचपन में ही संस्कार युक्त वातावरण में रखना चाहिए।
(32)
बेरोजगारी की समस्या
एक जमाना था कि कोई
अपने आपको स्नातक या एम.ए. कहते हुए गर्व से फूला न समाता था लेकिन आज के समय में
एम.ए: करने वाला भी बगले झांकने को मजबूर है। वह समझ नहीं पाता कि एम.ए. की डिग्री
को लेकर क्या करे। आज नौकरी के लिए अनुभव को देख रहे हैं, प्रोडक्शन
को देख रहे हैं। उनके लिए शिक्षा.कोई अर्थ नहीं रखती। सन् 2000 तक तो डिग्रियों की
फिर भी कुछ पूछ थी किन्तु इक्कीसवीं सदी में प्रवेश करते ही शिक्षा के निजीकरण का
बोलबाला हो गया।
तकनीकी शिक्षा और
कम्प्यूटर अनिवार्य कर दिए गए। कॉलेज की सैद्धान्तिक शिक्षा बिल्कुल बेकार हो चुकी
है। आज स्थिति यह है कि बी.ए., एम.ए. किए हुए छात्र लगभग बेकार
घूमते हैं। जब तक वे कम्प्यूटर, बी.एड या अन्य कोई
व्यावसायिक डिग्री न ले लें, उनके लिए नौकरी के द्वार बन्द
ही समझो।
(33)
नारी तू नारायणी
प्राचीन युग में
नारी केवल भोग की वस्तु थी। पुरुष नारी की आशा-आकांक्षाओं के प्रति बहुत उदासीन
रहता था। अभागी नारी घर की लक्ष्मण रेखा को पार करने का दुस्साहस करने में बिल्कुल
असमर्थ थी। नारी को किसी भी क्षेत्र में प्रवेश करने की अनुमति नहीं थी। नारी की
स्थिति जिंदा लाश की तरह थी। लेकिन आधुनिक नारी ने शिक्षा, राजनीति,
व्यवसाय आदि विभिन्न क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन करके
सबको चौंका दिया। आधुनिक युग में नारी ने अपनी महत्ता को पहचाना।
उसने दासता के.
बन्धनों को तोड़कर स्वतन्त्र वातावरण में साँस ली। इसीलिए आजकल किशोरों की अपेक्षा
किशोरियाँ शिक्षा के क्षेत्र में कहीं आगे हैं। वे कला विषयों में ही नहीं बल्कि
वाणिज्य और विज्ञान विषयों में भी अत्यन्त सफलतापूर्वक शिक्षा ग्रहण कर रही हैं।
आज की नारी भावुकता के स्थान पर बौद्धिकता को अधिक प्रश्रय देने लगी है।
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